कहीं किसी सूखती धरा के सीने पर
कहीं किसी दरार में
कोई बीज
जीवन की जददोजहद के बीच
कुलबुलाहट में जी रहा होता है।
बारिश, हवा, धूप
के बावजूद
दरारों में बसती जिंदगी
खुले आकाश में जीना चाहती है।
कोई पौधा
जब
वृक्ष होकर देता है छांव
फल
जीवन
हवा
और बहुत कुछ।
तब उसे सार्थकता का होता है अहसास।
दरारों के बीच देखिएगा
कहीं कोई पौधा
यदि
नजर आ जाए
तो
बना दीजिएगा ठहरकर
दो पल
उसकी राह आसान।
उसके और खुले आसमान के बीच
के उस अंधेरे को
घुटन को
कम कर दीजिएगा
उस दरार को मिटाकर।
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआभार आपका प्रियंका जी।
हटाएंवाह्ह लाज़वाब...
जवाब देंहटाएंदरारों की दराज़ में
छुपी कहानियाँ
कभी फुरसत हो
तो पढ़िएगा
अंधेरों की मनमर्ज़ी
और मनमानियाँ....।
सादर
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ४ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आभार आपका श्वेता जी। रचना आपको पसंद आई।
जवाब देंहटाएंमार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआभार
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