कविताएं मन तक टहल आती हैं, शब्दों को पीठ पर बैठाए वो दूर तक सफर करना चाहती हैं हमारे हरेपन में जीकर मुस्कुराती हैं कोई ठोर ठहरती हैं और किसी दालान बूंदों संग नहाती है। शब्दों के रंग बहुतेरे हैं बस उन्हें जीना सीख जाईये...कविता यही कहती है।
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Saturday, July 30, 2022
हमारे प्रेम अनुबंध के दस्तावेज
Thursday, March 25, 2021
तुम क्यों खोजते हो प्रेम को
तुम खोजते हो
प्रेम का अंश बिंदु।
तुम खोजते हो
प्रेम।
तुम खोजते हो।
प्रेम का पर्याय।
तुंम खोजते हो
प्रेम में कोई चेहरा।
तुम खोजते हो
प्रेम में कोई उम्र।
तुम खोजते हो
प्रेम में एक शरीर।
तुम खोजते हो
प्रेम में एक बाजार।
तुम खोजते हो
प्रेममें एक अपंग बहाना।
तुम खोजते हो
प्रेम का शहद और मिठास।
तुम खोजते हो
प्रेम के बीच कहीं कोई रसीला रिश्ता।
तुम खोजते हो
प्रेम और प्रेम की पीठ पर
सवार
कोई उसी तरह की दूसरी जिद।
तुम कितना कुछ खोजते हो
प्रेम में
प्रेम के लिए
प्रेम तक पहुंचने के लिए
प्रेम को पाने के लिए।
तुम नहीं खोजना चाहते
प्रेम का सच
प्रेम का उम्रदराज चेहरा
प्रेम का सूखा शरीर
्प्रेम का झुर्रीदार चेहरा
प्रेम में सवाल
प्रेम का ढलना
प्रेम का मुरझा जाना
प्रेम का बुजुर्ग होना
प्रेम का थका सा चेहरा।
तुम क्यों खोजते हो
प्रेम को
प्रेम
खोजा नहीं जा सकता
वो
है तो उपजेगा
और
तुम्हें
अंकुरित भी करेगा
और यदि
प्रेम नहीं है
तब तुम सूखे जंगल
की
एक तपती शिला हो
जिस पर
रिश्ते की कोई नमी
प्रेम की तासीर
नहीं बन पाएगी।
रिश्तों का सूख जाना
प्रेम का सूख जाना नहीं है
प्रेम का सूख जाना
रिश्तों का अंत है।
ये हमारी जिद...?
सुना है गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं तापमा...
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नदियां इन दिनों झेल रही हैं ताने और उलाहने। शहरों में नदियों का प्रवेश नागवार है मानव को क्योंकि वह नहीं चाहता अपने जीवन में अपने जीवन ...
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कागज की नाव इस बार रखी ही रह गई किताब के पन्नों के भीतर अबकी बारिश की जगह बादल आए और आ गई अंजाने ही आंधी। बच्चे ने नाव सहेजकर रख दी उस पर अग...
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यूं रेत पर बैठा था अकेला कुछ विचार थे, कुछ कंकर उस रेत पर। सजाता चला गया रेत पर कंकर देखा तो बेटी तैयार हो गई उसकी छवि पूरी होते ही ...