कोई गंध
तुम्हें और मुझे
खींचती है
कोई श्वेत गंध।
तुम्हें
मुझसे गुजरने को
बेताब करता
यह
श्वेत वक्त।
ये जो
पत्ते हैं
यह तुम्हारे हमारे
प्रेम अनुबंध के
दस्तावेज हैं।
यह उम्र के पैर की भांति
पदचिह्न नहीं छोड़ते
यह
बस अंकित हैं
तुममें
और
मुझमें
एक इबारत बनकर।
मैं तुम्हें
यह पूरा श्वेत सच
देना चाहता हूँ
ताकि
हम सहेज सकें
गढ़ सकें
भविष्य।
मैं तुममें
और
यकीनन तुम
मुझमें
महकते हैं
एक सदी का सच होकर।
देखना एक दिन
यह पत्ते
हमारी डायरी के पन्नों में
हमारी उम्र
हमारी खुशियों के
हस्ताक्षर होंगे।
वाह। बहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका
Deleteअत्युत्तम रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका
Deleteउम्दा सृजन जी .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका
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