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बुधवार, 25 जून 2025

नेह से उकेरा गया महावर है प्रेम



 प्रेम 

तुम्हारे चेहरे पर

मुझे देखकर

आने वाली मुस्कान ही तो है।

प्रेम 

तुम्हें छूते ही 

गहरे तक आंखों में सुर्खी का घुल जाना 

प्रेम ही तो है।

प्रेम 

तुम्हें बार-बार दरवाजे तक लाता है

मेरे इंतजार में

और मुझे

हर रात कई बार 

तुम्हें गहरी नींद में सोए देखने

और देखकर

आनंद पाने को जगाता है।

प्रेम

तुम्हारे शरीर में आत्मा 

और भाव का स्पंदन है

और

मेरे शरीर में 

तुम्हारे हर पल होने का शास्वत सत्य।

सच 

प्रेम परिभाषित नहीं हो सकता 

क्योंकि

वह 

जिंदगी पर नेह से

उकेरा गया 

महावर है

जिसका अर्थ

एक स्त्री से अधिक कोई नहीं समझ सकता। 






Thanks for photograp google

 

10 टिप्‍पणियां:

  1. तुम्हारे हर पल होने का शास्वत सत्य।
    प्रेम को परिभाषित करती बहुत गहरी कविता!

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रेम की अनुपम परिभाषा

    जवाब देंहटाएं

अभिव्यक्ति

 प्रेम  वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है।  शरीर  क...