तुम खोजते हो
प्रेम का अंश बिंदु।
तुम खोजते हो
प्रेम।
तुम खोजते हो।
प्रेम का पर्याय।
तुंम खोजते हो
प्रेम में कोई चेहरा।
तुम खोजते हो
प्रेम में कोई उम्र।
तुम खोजते हो
प्रेम में एक शरीर।
तुम खोजते हो
प्रेम में एक बाजार।
तुम खोजते हो
प्रेममें एक अपंग बहाना।
तुम खोजते हो
प्रेम का शहद और मिठास।
तुम खोजते हो
प्रेम के बीच कहीं कोई रसीला रिश्ता।
तुम खोजते हो
प्रेम और प्रेम की पीठ पर
सवार
कोई उसी तरह की दूसरी जिद।
तुम कितना कुछ खोजते हो
प्रेम में
प्रेम के लिए
प्रेम तक पहुंचने के लिए
प्रेम को पाने के लिए।
तुम नहीं खोजना चाहते
प्रेम का सच
प्रेम का उम्रदराज चेहरा
प्रेम का सूखा शरीर
्प्रेम का झुर्रीदार चेहरा
प्रेम में सवाल
प्रेम का ढलना
प्रेम का मुरझा जाना
प्रेम का बुजुर्ग होना
प्रेम का थका सा चेहरा।
तुम क्यों खोजते हो
प्रेम को
प्रेम
खोजा नहीं जा सकता
वो
है तो उपजेगा
और
तुम्हें
अंकुरित भी करेगा
और यदि
प्रेम नहीं है
तब तुम सूखे जंगल
की
एक तपती शिला हो
जिस पर
रिश्ते की कोई नमी
प्रेम की तासीर
नहीं बन पाएगी।
रिश्तों का सूख जाना
प्रेम का सूख जाना नहीं है
प्रेम का सूख जाना
रिश्तों का अंत है।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २६ मार्च २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आभारी हूं श्वेता जी। आपने मेरी रचना को पसंद किया और उसे सम्मान दिया पुनः आभार।
Deleteगवेषणआ से युक्त सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteजी आभार आपका आदरणीय...।
ReplyDeleteरिश्तों का सूख जाना
ReplyDeleteप्रेम का सूख जाना नहीं है
प्रेम का सूख जाना
रिश्तों का अंत है।///
प्रेम पर अद्भुत चिंतन और विस्मयकारी निष्कर्ष!!
हार्दिक शुभकामनाएं।
जी बहुत आभार रेणु जी...
ReplyDeleteआज तो प्रेम का महाकाव्य पढ़ लिया ... प्रेम में इतना क्या और क्यों ढूँढते हो ...अंतिम पंक्तियाँ जीवन के लिए सोचने पर मजबूर कर रही हैं ..
ReplyDeleteरिश्तों का सूख जाना
प्रेम का सूख जाना नहीं है
प्रेम का सूख जाना
रिश्तों का अंत है।
बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना ...
पत्तों सी होती है
ReplyDeleteकई रिश्तों की उम्र
शानदार
सादर