धूप बाकी है
अभी
धूल
होती
जिंदगी की परत
पर
एक टुकड़ा
रोशनी
अभी बाकी है।
उम्र के हरे
पत्तों की
पीठ
पर सूखे का मौसम
कहीं कोना
तलाश रहा है।
हरे
पत्तों की
पीठ
के पीछे
कोई
सांझ है और रात भी।
पत्तों का
निज़ाम
आदमी की आदमखोर
होती
ख्वाहिशों
पर एक सख्त
हस्ताक्षर है।
सच
पत्तों ने
अपनी
धूप को
अपनी मुट्ठी में छिपा
लिया है
अगली
पीढ़ी की मुस्कान
के लिए...।
वो धूप को
जंगल नहीं होने देंगे...।
सच
ReplyDeleteपत्तों ने
अपनी
धूप को
अपनी मुट्ठी में छिपा
लिया है
अगली
पीढ़ी की मुस्कान
के लिए...।
वो धूप को
जंगल नहीं होने देंगे...।..आशा ही जीवन है बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जी आपका साधुवाद...। आभारी हूं जो आपको मेरी कविताएं गहरे छू रही हैं।
Deleteसर आप मेरी गौरैया पर प्रकाशित रचना अवश्य देखें,मैं अपने गीत ब्लॉग पर प्रकृति से संबंधित लोकगीत भी डालती हूं, मुझे आपके प्रोफाइल से पता चला कि अशाअप पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य करते हैं, आशा है,आप अवश्य पधारेगे ।सादर नमन ।
ReplyDeleteमैं आपकी कविता देख चुका हूं और आपकी रचनाएं सतत देख रहा हूं। आप अच्छा और गहन लिखती हैं। प्रकृति को हम सभी की आवश्यकता है ये उसकी जरुरत नहीं है ये उसका नेह है जो वह हमें अवसर प्रदान कर रही है। आभारी हूं...।
Delete*अशाअप/आप
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2078...पीपल की कोमल कोंपलें बजतीं हैं डमरू-सीं पुरवाई में... ) पर गुरुवार 25 मार्च 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी बहुत आभार रविंद्र जी...। आभारी हूं जो आप मेरी रचना को नेह प्रदान कर रहे हैं।
Deleteबहुत ही सुंदर रचना, हैडर पर लिखे हुए शब्दों का जवाब नहीं, पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा , आपकी पत्रिका लेने को इच्छुक हूँ, मुझे प्रकृति से काफी लगाव है, आपकी पत्रिका इसी से संबंधित है , कैसे ले सकती हूँ कृपया बताये यदि कोई परेशानी न हो , नमन शुभ प्रभात
ReplyDeleteजी आत्मीय आभार ज्योति जी। हमारी पत्रिका पूरी तरह से प्रकृति पर केंद्रित है...अभी तक हमने जरुरी विषय पूरी जिम्मेदारी से उठाएं हैं। नदी, सूखा, प्रदूषण, आपदा और ऐसे ही अनेक विषय। आप पत्रिका देखना चाहती हैं तो आप मेरे व्हाटसएस नंबर पर अपना नंबर भेज दीजिए कुछ अंक आपको व्हाटसऐप पर भेज दूंगा। हमें खुशी है कि प्रकृति को समझने और जीने वाले हमारे साथ आ रहे हैं। आभारी हूं...मेरा व्हाटसऐप नंबर है...8191903651
Deleteसुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत आभार आदरणीय...। आपकी प्रशंसा मुझे जिम्मेदार बना रही है।
Deleteआदमी की
ReplyDeleteआदमखोर होती ख़्वाहिशें,
पत्तों की मुट्ठी में छिपी
धूप,
बेहद गहन भावों से भरे बिंब चित्रित किये हैं आपने
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बेहतरीन अभिव्यक्ति सर।
सादर।
जी बहुत आभार आपका श्वेता जी...। प्रकृति की राह में हम सभी साथी हैं और हम सभी बेहतर कर रहे हैं। आपको रचना पसंद आई बहुत आभार।
Deleteसादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 26-03-2021) को
"वासन्ती परिधान पहनकर, खिलता फागुन आया" (चर्चा अंक- 4017) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
मीना जी बहुत बहुत आभारी हूं। मेरी रचना को सम्मान और नेह प्रदान करने के लिए पुनः आभार।
Deleteधूप की उष्णता को पत्तों ने छिपा लिया है , पत्ते होंगे तो वृक्ष भी होंगे । आदमी की आदमखोर ख्वाहिशें वृक्षों को रहने नहीं दे रहीं । हमे इसी का संरक्षण करना है । गहन भाव
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका संगीता जी...।
Deleteवाह !
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ प्रतिभा जी...।
Deleteसुन्दर सृजन प्राकृतिक सौंदर्य के प्रति समर्पित - -
ReplyDeleteबहुत आभार शांतनु जी...।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteआभार आपका आलोक जी...।
Deleteआशा का संचार करती सुंदर रचना।
ReplyDeleteजी बहुत आभार ज्योति जी...।
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआभार आपका अमृता जी...।
Deleteसार्थक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसाधुवाद 🙏
आभार आपका...
Deleteगहन भावों को समेटे यह सार्थक प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी। आपको शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबहुत आभार आपका
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