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Wednesday, March 24, 2021

धूप को जंगल नहीं होने देंगे


 

धूप बाकी है

अभी 

धूल 

होती

जिंदगी की परत

पर 

एक टुकड़ा

रोशनी

अभी बाकी है।

उम्र के हरे 

पत्तों की

पीठ 

पर सूखे का मौसम

कहीं कोना

तलाश रहा है।

हरे 

पत्तों की

पीठ

के पीछे 

कोई 

सांझ है और रात भी।

पत्तों का 

निज़ाम

आदमी की आदमखोर 

होती

ख्वाहिशों 

पर एक सख्त

हस्ताक्षर है।

सच 

पत्तों ने 

अपनी 

धूप को 

अपनी मुट्ठी में छिपा 

लिया है

अगली 

पीढ़ी की मुस्कान

के लिए...।

वो धूप को

जंगल नहीं होने देंगे...।

31 comments:

  1. सच

    पत्तों ने

    अपनी

    धूप को

    अपनी मुट्ठी में छिपा

    लिया है

    अगली

    पीढ़ी की मुस्कान

    के लिए...।

    वो धूप को

    जंगल नहीं होने देंगे...।..आशा ही जीवन है बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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    Replies
    1. जी आपका साधुवाद...। आभारी हूं जो आपको मेरी कविताएं गहरे छू रही हैं।

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  2. सर आप मेरी गौरैया पर प्रकाशित रचना अवश्य देखें,मैं अपने गीत ब्लॉग पर प्रकृति से संबंधित लोकगीत भी डालती हूं, मुझे आपके प्रोफाइल से पता चला कि अशाअप पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य करते हैं, आशा है,आप अवश्य पधारेगे ।सादर नमन ।

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    1. मैं आपकी कविता देख चुका हूं और आपकी रचनाएं सतत देख रहा हूं। आप अच्छा और गहन लिखती हैं। प्रकृति को हम सभी की आवश्यकता है ये उसकी जरुरत नहीं है ये उसका नेह है जो वह हमें अवसर प्रदान कर रही है। आभारी हूं...।

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2078...पीपल की कोमल कोंपलें बजतीं हैं डमरू-सीं पुरवाई में... ) पर गुरुवार 25 मार्च 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी बहुत आभार रविंद्र जी...। आभारी हूं जो आप मेरी रचना को नेह प्रदान कर रहे हैं।

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  4. बहुत ही सुंदर रचना, हैडर पर लिखे हुए शब्दों का जवाब नहीं, पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा , आपकी पत्रिका लेने को इच्छुक हूँ, मुझे प्रकृति से काफी लगाव है, आपकी पत्रिका इसी से संबंधित है , कैसे ले सकती हूँ कृपया बताये यदि कोई परेशानी न हो , नमन शुभ प्रभात

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    1. जी आत्मीय आभार ज्योति जी। हमारी पत्रिका पूरी तरह से प्रकृति पर केंद्रित है...अभी तक हमने जरुरी विषय पूरी जिम्मेदारी से उठाएं हैं। नदी, सूखा, प्रदूषण, आपदा और ऐसे ही अनेक विषय। आप पत्रिका देखना चाहती हैं तो आप मेरे व्हाटसएस नंबर पर अपना नंबर भेज दीजिए कुछ अंक आपको व्हाटसऐप पर भेज दूंगा। हमें खुशी है कि प्रकृति को समझने और जीने वाले हमारे साथ आ रहे हैं। आभारी हूं...मेरा व्हाटसऐप नंबर है...8191903651

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  5. Replies
    1. बहुत आभार आदरणीय...। आपकी प्रशंसा मुझे जिम्मेदार बना रही है।

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  6. आदमी की
    आदमखोर होती ख़्वाहिशें,
    पत्तों की मुट्ठी में छिपी
    धूप,
    बेहद गहन भावों से भरे बिंब चित्रित किये हैं आपने
    ----
    बेहतरीन अभिव्यक्ति सर।
    सादर।

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    1. जी बहुत आभार आपका श्वेता जी...। प्रकृति की राह में हम सभी साथी हैं और हम सभी बेहतर कर रहे हैं। आपको रचना पसंद आई बहुत आभार।

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  7. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 26-03-2021) को
    "वासन्ती परिधान पहनकर, खिलता फागुन आया" (चर्चा अंक- 4017)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

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    Replies
    1. मीना जी बहुत बहुत आभारी हूं। मेरी रचना को सम्मान और नेह प्रदान करने के लिए पुनः आभार।

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  8. धूप की उष्णता को पत्तों ने छिपा लिया है , पत्ते होंगे तो वृक्ष भी होंगे । आदमी की आदमखोर ख्वाहिशें वृक्षों को रहने नहीं दे रहीं । हमे इसी का संरक्षण करना है । गहन भाव

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    1. जी बहुत आभार आपका संगीता जी...।

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  9. Replies
    1. बहुत आभारी हूँ प्रतिभा जी...।

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  10. सुन्दर सृजन प्राकृतिक सौंदर्य के प्रति समर्पित - -

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    1. बहुत आभार शांतनु जी...।

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  11. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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    1. आभार आपका आलोक जी...।

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  12. आशा का संचार करती सुंदर रचना।

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    1. जी बहुत आभार ज्योति जी...।

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  13. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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    1. आभार आपका अमृता जी...।

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  14. सार्थक अभिव्यक्ति...
    साधुवाद 🙏

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  15. गहन भावों को समेटे यह सार्थक प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी। आपको शुभकामनाएँ।

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  16. बहुत आभार आपका

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