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Tuesday, March 23, 2021

सच बोनसाई पौधा है


 

चेहरे 

और 

चेहरों की 

भीड़

के बीच

सच 

आदमी 

की 

आदत

नहीं रहा अब।

सच

केवल

घर के 

आंगन 

में बोया जाने वाला

बोनसाई

पौधा है

जो 

बाहरी खूबसूरती का 

चेहरा है।

बोनसाई

हो जाना

सच की नहीं

आदमी के

सख्त मुखौटे

की मोटी सी दरार है।

सच

दरारों में 

ही पनपता है

अनचाहे पीपल की तरह...।

8 comments:


  1. बोनसाई

    हो जाना

    सच की नहीं

    आदमी के

    सख्त मुखौटे

    की मोटी सी दरार है।...बहुत खरी खरी बात कह दी आपने, आपकी सटीक बात को नमन है ।

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  2. बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी...।

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 25 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. सच

    दरारों में

    ही पनपता है

    अनचाहे पीपल की तरह...सच में सच को बहुत ही सुंदर परिभाषा में व्यक्त किया है।
    सादर

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  5. अनचाहे पीपल की तरह सच का पनपना कैसी कैसी विडम्बना है!

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  6. बहुत ही सुन्दर सृजन - - साधुवाद सह।

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  7. यानि सच अनचाहा हो गया .... विकट स्थिति है ।

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