धूप बाकी है
अभी
धूल
होती
जिंदगी की परत
पर
एक टुकड़ा
रोशनी
अभी बाकी है।
उम्र के हरे
पत्तों की
पीठ
पर सूखे का मौसम
कहीं कोना
तलाश रहा है।
हरे
पत्तों की
पीठ
के पीछे
कोई
सांझ है और रात भी।
पत्तों का
निज़ाम
आदमी की आदमखोर
होती
ख्वाहिशों
पर एक सख्त
हस्ताक्षर है।
सच
पत्तों ने
अपनी
धूप को
अपनी मुट्ठी में छिपा
लिया है
अगली
पीढ़ी की मुस्कान
के लिए...।
वो धूप को
जंगल नहीं होने देंगे...।