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Wednesday, March 24, 2021

धूप को जंगल नहीं होने देंगे


 

धूप बाकी है

अभी 

धूल 

होती

जिंदगी की परत

पर 

एक टुकड़ा

रोशनी

अभी बाकी है।

उम्र के हरे 

पत्तों की

पीठ 

पर सूखे का मौसम

कहीं कोना

तलाश रहा है।

हरे 

पत्तों की

पीठ

के पीछे 

कोई 

सांझ है और रात भी।

पत्तों का 

निज़ाम

आदमी की आदमखोर 

होती

ख्वाहिशों 

पर एक सख्त

हस्ताक्षर है।

सच 

पत्तों ने 

अपनी 

धूप को 

अपनी मुट्ठी में छिपा 

लिया है

अगली 

पीढ़ी की मुस्कान

के लिए...।

वो धूप को

जंगल नहीं होने देंगे...।

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...