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रविवार, 29 जून 2025

जल्द नहीं कटती दोपहर

 बोझिल सी सांझ

के बाद

कोई सुबह आती है

जो दोपहर की तपिश साथ लाती है

और 

उसमें घुल जाया करता है

पूरा जीवन।

उसके बाद 

थके शरीर पर 

होले होले शीतल वायु 

लगाती रहती है मरहम।

फिर 

कोई सांझ बोझिल नहीं होती। 

सुबह, दोपहर और सांझ

यही तो

जीवन है

और 

हरेक का अपना ओरा।

सुबह गहरे इंतजार के बाद होती है

कई स्याह रातों के कटने के बाद।

दोपहर जल्द नहीं कटती

थकाकर पूरी उम्र को चकनाचूर कर देती है।

और 

सांझ उस दौर का नाम है

जब आप थके शरीर को

कमजोर पैरों पर

अनिच्छा भरे माहौल में 

रोज कुछ कदम

चलाते हो, थकाते हो

और 

सो जाते हो...।

सोमवार, 25 जुलाई 2022

सांझ होने पर


नारंगी जिद लिए 

सूरज आया 

अबकी मेरे देस...। 

अबकी 

महुआ तुम्हारे बदन से महकेगा, 

सुनहरी चादर 

सांझ होने पर 

उसे लपेट सूरज

अपने सिराहने  रख 

सो जाएगा 

सदी के किसी सूनसान गांव में 

किसी जिंदा कुएं की 

मुंडेर पर सटकर। 

सुबह 

उसी चादर को झाड़कर 

आसमान को पहना देगा, 

तुम उस सुबह का इंतज़ार करो, 

तब कुछ 

सुनहरा सा वक्त में बीनकर टांक दूंगा 

घर के दालान में 

लगे नीम पर, 

हम नीम की 

उम्मीद वाली छांव में मुस्कुराएं...

 और 

तब सूर्य भी कभी 

सुस्ताने ठहर जाएगा 

वहीं किसी झूलती शाख पर...।

समय की पीठ

 कहीं कोई खलल है कोई कुछ शोर  कहीं कोई दूर चौराहे पर फटे वस्त्रों में  चुप्पी में है।  अधनंग भागते समय  की पीठ पर  सवाल ही सवाल हैं। सोचता ह...