नारंगी जिद लिए
सूरज आया
अबकी मेरे देस...।
अबकी
महुआ तुम्हारे बदन से महकेगा,
सुनहरी चादर
सांझ होने पर
उसे लपेट सूरज
अपने सिराहने रख
सो जाएगा
सदी के किसी सूनसान गांव में
किसी जिंदा कुएं की
मुंडेर पर सटकर।
सुबह
उसी चादर को झाड़कर
आसमान को पहना देगा,
तुम उस सुबह का इंतज़ार करो,
तब कुछ
सुनहरा सा वक्त में बीनकर टांक दूंगा
घर के दालान में
लगे नीम पर,
हम नीम की
उम्मीद वाली छांव में मुस्कुराएं...
और
तब सूर्य भी कभी
सुस्ताने ठहर जाएगा
वहीं किसी झूलती शाख पर...।
सुनहरा से वक़्त तभी टांक पाएँगे जब कि आज पास पेड़ पौधे होंगे । खूबसूरत बिम्ब के साथ खूबसूरत रचना ।
ReplyDeleteसुनहरा सा वक्त में बीनकर टांक दूंगा
इस पंक्ति में शब्द में ए स्थान पर मैं आएगा क्या ?
जी आभार...देखता हूं।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-7-22} को गीत "वीरों की गाथाओं से" (चर्चा अंक 4502)
पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
आभार आपका कामिनी जी....
Deleteखूबसूरत रचना...👏👏👏
ReplyDeleteआभार आपका।
Deleteबहुत बढियां
ReplyDeleteआभार आपका
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteआभार आपका
Deleteबहुत सुंदर ,मन मोहक!!
ReplyDeleteआभार आपका
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