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Monday, July 25, 2022

सांझ होने पर


नारंगी जिद लिए 

सूरज आया 

अबकी मेरे देस...। 

अबकी 

महुआ तुम्हारे बदन से महकेगा, 

सुनहरी चादर 

सांझ होने पर 

उसे लपेट सूरज

अपने सिराहने  रख 

सो जाएगा 

सदी के किसी सूनसान गांव में 

किसी जिंदा कुएं की 

मुंडेर पर सटकर। 

सुबह 

उसी चादर को झाड़कर 

आसमान को पहना देगा, 

तुम उस सुबह का इंतज़ार करो, 

तब कुछ 

सुनहरा सा वक्त में बीनकर टांक दूंगा 

घर के दालान में 

लगे नीम पर, 

हम नीम की 

उम्मीद वाली छांव में मुस्कुराएं...

 और 

तब सूर्य भी कभी 

सुस्ताने ठहर जाएगा 

वहीं किसी झूलती शाख पर...।

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...