फ़ॉलोअर

जीवन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
जीवन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 28 जून 2025

काश कोई बूंद जी पाती एक सदी



बारिश की बूंदों पर 

लिखी हैं

अनेक उम्मीदें

पर्व

खुशियां

जीवन

सहजता

जीवन का दर्शन

और 

प्रेयसी का इंतजार। 

बूंदों को भी क्या हासिल

एक पल का जीवन

हजार ख्वाहिशों पर 

हर बार कुर्बान। 

काश कोई बूंद

जी पाती

एक सदी

ठहर पाती एक पूरी उम्र

देख पाती

क्या बदल जाता है उसके उस एक पल में।

सोमवार, 27 फ़रवरी 2023

पदचिह्न मिट रहे हैं

एक दिन
गांव की शहर हो जlने की लालसा
मिटा देगी 
लौटने की राह।
खेत 
अब रौंदे जा रहे हैं
मकानों के पैरों तले।
गांव 
नगर होकर 
सिर खुजा रहे हैं। 
गांव की पीठ पर 
विकसित होने का दिवास्वप्न
उकेरा गया
गहरे नाखूनों से। 
नगर 
महानगर की चमक में 
बावले होकर 
भाग रहे हैं। 
नगर के पीछे 
शर्ट को पकड़े दौड़ रहे हैं 
गांव। 
नगर रोज 
धक्के खाता 
महानगर आता है
देर रात थका मांदा लौट जाता है
देर रात सो जाता है
सीमेंट जैसे सपने ओढ़कर। 
महानगर आ फंसा है 
अपनी जकड़ में
दम फूल रहा है
हांफ रहा है
रोज बहाने खोजकर
गांव की हरियाली 
किताबों में महसूस करता है। 
महानगर 
गांव होना चाहता है
गांव नगर
और 
नगर होना चाहते हैं महानगर। 
एक दिन खेत खत्म हो जाएंगे
तब 
गांव भी खत्म होंगे।
महानगर तब खाली होकर 
विकास की एतिहासिक भूल 
कहलाएंगे। 
तब 
नगर 
की पीठ पर फिसलते
लटकते 
खिसियाहट भरे 
गांव होंगे। 
हम बैलगाड़ी से
सीमेंट की सड़कों पर 
होंगे
लौटने को आतुर 
पुरातन युग की ओर। 
तब खबरों में 
केवल मकान होंगे
आदमी नहीं। 
पानी और हवा 
नहीं होगी
विकास होगा खौफनाक और डरावना।


फांस

 शब्द और उसकी कोरों के बीच भाव कहीं उलझे रह जाते हैं अक्सर। एक उम्र तक एक सदी तक। कोई नहीं सुलझाता उन्हें कोई नहीं खोलना चाहता  उन उलझी गांठ...