कहीं कोई खलल है
कोई कुछ शोर
कहीं कोई दूर चौराहे पर
फटे वस्त्रों में
चुप्पी में है।
अधनंग भागते समय
की पीठ पर
सवाल ही सवाल हैं।
सोचता हूं
सवाल और खामोशी
क्या एक जैसे होते हैं ?
नहीं नहीं
सवाल जब खामोशी में समा जाते हैं
तब समय की पीठ लहुलहान हो उठती है
और
खामोशी जब सवाल बनती है
गहरे जख्म और गहरे होते जाते हैं।