जिंदगी बता तो सही
कैसे कहें तुझसे
कुछ मन की
कुछ बचपन की
कुछ जवानी की
कुछ उम्रदराज होने के पहले भयाक्रांत सच की।
हर हिस्सा
अपने अपने सच समेटे है
कोई किसी की सुनना नहीं चाहता
केवल
अपनी सुनाना चाहता है
कौन है जो उम्र के इन हिस्सों की
तसल्ली से बैठकर
सुन ले...।
जिंदगी कोई शिकायत कहां है
हां
सवाल हैं
रहेंगे
क्योंकि इस दौर में
कोई और सुन भी कहां रहा है
हम अपनी
और
अपने मन भी
सुन नहीं पा रहे हैं
जिद है
सनक है
और
जिंदगी तुम हो...
निखालिस तुम...सवाल सी ?