उम्र के
पेड़
की शाखों पर
उगती
खिलखिलाहट
सयानापन
लाचारी
और बहुत कुछ।
शाखों पर
उगते हैं
कुछ
बेबस बच्चे
उनकी रुंधी हंसी।
बच्चों की पीठ पर
बचपन में
उग आती हैं
बेबसी
भूख
और तार-तार जिंदगी।
उम्र के पेड़ पर
अब उगने लगे हैं
लालच
और
लोलुपता।
कहीं-कहीं
उग रही है
कोपलें उम्मीद की।
पेड़ की शाखों से
झांक रही हैं
कुछ सूखी
और काली आंखें..।
उफ़्फ़ , ये कैसा दृश्य है । कितनी बेबसी उग आए है ।
जवाब देंहटाएंमार्मिक चित्रण
जी बहुत आभारी हूं आपका।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-9-21) को "है अस्तित्व तुम्ही से मेरा"(चर्चा अंक 4185) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
जी बहुत आभारी हूं आपका।
हटाएंबहुत ही मार्मिक रचना!
जवाब देंहटाएंजी बहुत आभारी हूं आपका।
हटाएंबेहद हृदयस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंजी बहुत आभारी हूं आपका।
हटाएंअन्तर्मन को छोटी आपकी रचना एक सच्चाई से परिचय करा गई ।
जवाब देंहटाएंजी बहुत आभारी हूं आपका।
हटाएंमार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंजी बहुत आभारी हूं आपका।
जवाब देंहटाएंसटीक ! हृदय को विचलित करते उद्गार।
जवाब देंहटाएंशानदार भावाभिव्यक्ति।
जी बहुत बहुत आभार आपका
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