कविताएं मन तक टहल आती हैं, शब्दों को पीठ पर बैठाए वो दूर तक सफर करना चाहती हैं हमारे हरेपन में जीकर मुस्कुराती हैं कोई ठोर ठहरती हैं और किसी दालान बूंदों संग नहाती है। शब्दों के रंग बहुतेरे हैं बस उन्हें जीना सीख जाईये...कविता यही कहती है।
पेज
▼
पुरवाई
▼
Showing posts with label हिंदी असहाय इंतजार बाजार अलाप आत्मालाप आत्मग्लानि. Show all posts
Showing posts with label हिंदी असहाय इंतजार बाजार अलाप आत्मालाप आत्मग्लानि. Show all posts