Followers

Monday, February 15, 2021

हर पांचवें कदम


 मैं 

रेतीला सा

सख्त इच्छाओं को

पीठ पर 

टांगें

चलता जा रहा हूँ

समुद्र किनारे

गीली मिट्टी पर।

पैरों 

के निशान

गहरे हैं

लेकिन

हर पांचवें कदम

पलटकर देखता 

हूँ

कुछ निशान

पानी

पी चुके नज़र आते हैं

कुछ

मेरे बढ़ने का 

कर रहे हैं

बेसब्री से इंतज़ार।

पीठ पर लदी 

सख्त इच्छाएं

पसीज रही हैं

मेरे

रेतीले होने पर

उसे ऐतऱाज है।

सोचता हूँ

रेतीला

होना

सख्त होने के खिलाफ 

गवाही है

या एकालाप।

इतना ही समझ पाया

रेतीला होना

इच्छाओं के विपरीत

एक 

साहसिक कदम है।

हर पल

बिखर रहा हूँ

समय की पूछ 

के 

निशानों की आहट से...।

संदीप कुमार शर्मा



(फोटोग्राफ...अतुल श्रीवास्तव जी)

4 comments:

  1. हर पांचवा कदम..गहन विवेचन से परिपूर्ण रचना..

    ReplyDelete
  2. रेतीले और सागर क करीब होने पर खोने का एहसास तो रहगा ... पर मतलब तो चलने से है ... जो बहुत जरूरी है ... अच्छी रचना है ...

    ReplyDelete

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...