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गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

हरी हो उठती है कविता

 


कोई कविता 

तब 

हरी हो उठती है

जब

पत्तियों के 

शरीर पर

बूंदों का 

स्पर्श होता है।

कोई कविता

तब 

हरी हो उठती है

जब 

सूखे

नैन

बावरी के नम हो जाते हैं

परदेस 

से 

मिली पिया की

चिट्ठी पाकर।

जिसे वो छाती से लगाए

उल्हड़ सी भागती है

जंगल की ओर

अपना

आंचल बचाते हुए।

कोई कविता

तब 

हरी हो उठती है

जब 

चातक

बूंद पाकर

आकाश की ओर देख

मुस्कुराता है।


4 टिप्‍पणियां:

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