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Wednesday, April 7, 2021

मन की नदी के तट पर


एक नदी

बहती है

अब 

भी निर्मल

और 

पूरे प्रवाह से

मन 

की स्मृतियों में।

कोई 

तटबंध

नहीं है

कोई

रिश्ते 

की बाधा भी नहीं।

वो बहती है

मन 

की 

एक इबारत वाले

पथ पर।

वो बहती है

आंखों में

बिना सवाल लिए।

अंदर और बाहर

एक 

जिद्दी

सच है जो 

नदी को

पानी को

भावनाओं को

तटबंध 

में बांधकर

उसका दूसरा सिरा

कारोबार

की 

घूरती और ललचाई 

शिला से बांध देता है।

बाहर 

नदी नहीं है

केवल 

स्वार्थ और उसकी दिशा

के पथ पर

एक 

विवशता बहती है।

बाहर की नदी

कभी

मन की नदी

थी

अब केवल उसका

अक्स है।

बाहर की 

नदी 

अब नहीं झांकती

अपने अंदर

क्योंकि

सूखा देख 

वो सहम उठती है।

मैं थका हारा

बाहर की नदी

किनारे

पड़ी कुछ

अचेतन 

अवस्था वाली मछलियों 

को लिए

लौट आया

मन की नदी

के तट पर

और 

उन्हें

दे दी

वो निर्मल नदी।

एक दिन

मन की नदी

से 

मिलवाऊंगा

बाहर की नदी को। 

कहते हैं

स्मृतियां

हमें 

दोबारा गढ़ जाया करती हैं।

25 comments:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 09-04-2021) को
    " वोल्गा से गंगा" (चर्चा अंक- 4031)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

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  2. जी बहुत आभार मीना जी...।

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  3. मन की नदी को निर्बाध ही बहने देना चाहिए । मुझे लगता है मन की नदी कभी भी सूख ही नहीं सकती । उसमें निरंतर यादों का जल बढ़ता ही जाता है ।
    नदी मुझे हमेशा ही आकर्षित करती है । मैं तो स्वयं ही नदी की तरह बहते रहना चाहती हूँ ।

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  4. जी सच...। हमारी मन की नदी हमारे अंदर बहती है...।आभार

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  5. जी बहुत आभार आपका...

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  6. नदी की तरह अगर बहना है,तो कल्पनाशील होना ही होगा क्योंकि निर्बाध बहने के लिए न नदियों में जल है न जल के स्रोतों को को निर्बाध बनाने की इच्छाशक्ति । अतः हम सभी को कल्पनाओं में नदी की तरह बहते रहना चाहिए । सादर नमन ।

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    1. बहुत अच्छा लिखा आपने जिज्ञासा जी...। आभार आपका

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  7. स्मृतियां ही मन की नदी का संवेग है, बहुत सुंदर भाव प्रवाह।

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    1. बहुत आभार विश्वमोहन जी...।

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  8. मन की नदी निर्बाध बह सके ,इसके लिए तटस्थता बहुत आवश्यक है जो प्रवाह को बाधित किये बिना स्म़तियों की लहरों को सचल रहने दे.

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  9. वाह!खूबसूरत सृजन ।

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  10. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय

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  11. वाह ! बहुत सुंदर कल्पना, मन की नदी यूँही बहती रहे

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  12. बहुत सुन्दर, सरस अभिव्यक्ति

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  13. बहुत आभार आपका...

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  14. सुन्दर प्रस्तुति

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  15. बहुत सुंदर रचना।

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  16. सुंदर.. परिकल्पना..मन की नदी यूँ ही बहती रहे।
    बधाई

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