एक नदी
बहती है
अब
भी निर्मल
और
पूरे प्रवाह से
मन
की स्मृतियों में।
कोई
तटबंध
नहीं है
कोई
रिश्ते
की बाधा भी नहीं।
वो बहती है
मन
की
एक इबारत वाले
पथ पर।
वो बहती है
आंखों में
बिना सवाल लिए।
अंदर और बाहर
एक
जिद्दी
सच है जो
नदी को
पानी को
भावनाओं को
तटबंध
में बांधकर
उसका दूसरा सिरा
कारोबार
की
घूरती और ललचाई
शिला से बांध देता है।
बाहर
नदी नहीं है
केवल
स्वार्थ और उसकी दिशा
के पथ पर
एक
विवशता बहती है।
बाहर की नदी
कभी
मन की नदी
थी
अब केवल उसका
अक्स है।
बाहर की
नदी
अब नहीं झांकती
अपने अंदर
क्योंकि
सूखा देख
वो सहम उठती है।
मैं थका हारा
बाहर की नदी
किनारे
पड़ी कुछ
अचेतन
अवस्था वाली मछलियों
को लिए
लौट आया
मन की नदी
के तट पर
और
उन्हें
दे दी
वो निर्मल नदी।
एक दिन
मन की नदी
से
मिलवाऊंगा
बाहर की नदी को।
कहते हैं
स्मृतियां
हमें
दोबारा गढ़ जाया करती हैं।
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 09-04-2021) को
" वोल्गा से गंगा" (चर्चा अंक- 4031) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
जी बहुत आभार मीना जी...।
ReplyDeleteमन की नदी को निर्बाध ही बहने देना चाहिए । मुझे लगता है मन की नदी कभी भी सूख ही नहीं सकती । उसमें निरंतर यादों का जल बढ़ता ही जाता है ।
ReplyDeleteनदी मुझे हमेशा ही आकर्षित करती है । मैं तो स्वयं ही नदी की तरह बहते रहना चाहती हूँ ।
जी सच...। हमारी मन की नदी हमारे अंदर बहती है...।आभार
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका...
ReplyDeleteनदी की तरह अगर बहना है,तो कल्पनाशील होना ही होगा क्योंकि निर्बाध बहने के लिए न नदियों में जल है न जल के स्रोतों को को निर्बाध बनाने की इच्छाशक्ति । अतः हम सभी को कल्पनाओं में नदी की तरह बहते रहना चाहिए । सादर नमन ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा आपने जिज्ञासा जी...। आभार आपका
Deleteस्मृतियां ही मन की नदी का संवेग है, बहुत सुंदर भाव प्रवाह।
ReplyDeleteबहुत आभार विश्वमोहन जी...।
Deleteमन की नदी निर्बाध बह सके ,इसके लिए तटस्थता बहुत आवश्यक है जो प्रवाह को बाधित किये बिना स्म़तियों की लहरों को सचल रहने दे.
ReplyDeleteआभार प्रतिभा जी...।
Deleteवाह!खूबसूरत सृजन ।
ReplyDeleteआभार शुभा जी...
Deleteबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
ReplyDeleteआभार आपका आलोक जी...
Deleteसार्थक रचना।
ReplyDeleteआभार शास्त्री जी...
Deleteवाह ! बहुत सुंदर कल्पना, मन की नदी यूँही बहती रहे
ReplyDeleteआभार अनीता जी..
Deleteबहुत सुन्दर, सरस अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत आभार आपका...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार आपका ओंकार जी...
Deleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteसुंदर.. परिकल्पना..मन की नदी यूँ ही बहती रहे।
ReplyDeleteबधाई