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Friday, May 28, 2021

हिज्जे वाले सबक के बीच



मन में
कहीं
खिली हो तुम।
मन की
दीवारों पर
तुम्हारी मुस्कान
और
हमारा भरोसा
दोनों
उभरे हैं।
तुम कम बोलती हो
शब्द
ये शिकायत करते हैं
अक्सर।
तुम कहती हो
मैं
पढ़ लेता हूँ
तुम्हें
अक्सर तुमसे पहले।
ये जो
हम हैं
ये
जो
हमारी नेह गंध है
ये
कहीं
हमारे शब्दों का
एक ग्रंथ है
जो
तुम पढ़ जाती हो
एक पल में
हजारों बार
और में
जी लेता हूँ
तुम्हें
शब्दों के पार...।
आओ
छूकर देखते हैं
दीवार
जहाँ
अक्सर
हम रहते हैं
शब्दों के व्याकरण
के बीच
कठिन
और
सहजता
के परे
किसी बच्चे के
हिज्जे वाले
सबक के बीच...।


20 comments:

  1. Replies
    1. आभार आपका पाण्डेय जी

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29 -5-21) को "वो सुबह कभी तो आएगी..."(4080) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  3. आभार आपका कामिनी जी। रचना को सम्मान देने के लिए आभार।

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 30 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    Replies
    1. जी यशोदा जी...आपका बहुत बहुत आभार। मेरी रचना को सम्मान देने के लिए आभारी हूं।

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  5. वाह! अलहदा सी अभिव्यक्ति, मनहर बोलती ही।
    बहुत सुंदर सृजन।

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    Replies
    1. जी बहुत आभार आपका इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए।

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  6. शब्दों के पार ही मिलती है नेह गंध और शब्दों के मध्य में पढ़ा जाता है भरोसा ! सुंदर रचना

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  7. जी बहुत बहुत आभार आपका अनीता जी।

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  8. शब्दों के व्याकरण
    के बीच
    कठिन
    और
    सहजता
    के परे
    किसी बच्चे के
    हिज्जे वाले
    सबक के बीच...।सुंदर भावों का अनोखा सृजन ।

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    Replies
    1. जी बहुत आभार आपका स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए जिज्ञासा जी।

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  9. मन में
    कहीं
    खिली हो तुम।
    मन की
    दीवारों पर
    तुम्हारी मुस्कान
    और
    हमारा भरोसा
    दोनों
    उभरे हैं।
    तुम कम बोलती हो
    शब्द
    ये शिकायत करते हैं
    वाह!बहुत ही खूबसूरत रचना!

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    Replies
    1. जी बहुत आभार आपका मनीषा जी।

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  10. शब्दों से परे
    जो हमारा ग्रंथ है
    वही तो बस
    नेह गंध है ।
    बहुत खूबसूरती से लिखे ये एहसास ।
    बहुत खूब

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    Replies
    1. जी बहुत आभार आपका संगीता जी।

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  11. बहुत कोमल, बहुत सुंदर कविता...

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  12. शब्दों से परे
    जो हमारा ग्रंथ है
    वही तो बस
    नेह गंध है ।
    वाह!!!
    नेह गन्ध...बहुत ही लाजवाब सृजन।

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  13. जी बहुत आभार आपका

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