दिन स्याह हैं
कड़वे हैं
कंठ भिंच रहे हैं
रात की कालिख
पूरे दिन पर सवाल
उकेर रही है
दूर
बहुत दूर
कोई खूबसूरत सुबह
रात की निराशा को
चीरकर
बढ़ रही हमारी ओर
देखो इंतजार करो
भोर होने वाली है
कविताएं मन तक टहल आती हैं, शब्दों को पीठ पर बैठाए वो दूर तक सफर करना चाहती हैं हमारे हरेपन में जीकर मुस्कुराती हैं कोई ठोर ठहरती हैं और किसी दालान बूंदों संग नहाती है। शब्दों के रंग बहुतेरे हैं बस उन्हें जीना सीख जाईये...कविता यही कहती है।
दिन स्याह हैं
कड़वे हैं
कंठ भिंच रहे हैं
रात की कालिख
पूरे दिन पर सवाल
उकेर रही है
दूर
बहुत दूर
कोई खूबसूरत सुबह
रात की निराशा को
चीरकर
बढ़ रही हमारी ओर
देखो इंतजार करो
भोर होने वाली है
संदीप कुमार शर्मा, संपादक, प्रकृति दर्शन मासिक पत्रिका(प्रकृति दर्शन पत्रिका पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य कर रही है) वर्ष 2024 में श्री कल्पतरु संस्थान जयपुर द्वारा आयोजित समारोह में महामहिम राज्यपाल श्री कलराज मिश्र जी द्वारा ‘वृक्ष मित्र’ सम्मान प्रदान किया गया। इस दौरान ट्रीमैन ऑफ इंडिया श्री विष्णु लांबा जी सहित पर्यावरण पर कार्य कर रहे श्री कल्पतरु संस्थान के कार्यकर्ता विशेष रुप से उपस्थित थे। वर्ष 2025 में मध्यप्रदेश खंडवा में शुरुआत संस्था द्वारा आयोजित समारोह में वरिष्ठ पत्रकार श्री राजेश बादल जी द्वारा ‘गणतंत्र के रक्षक’ सम्मान प्रदान किया गया। वर्ष 2025 में ही राजस्थान के अलवर स्थित भीकमपुरा में तरुण भारत संघ द्वारा आयोजित स्वर्ण जयंती समारोह में मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित जलपुरुष डॉ. राजेंद्र सिंह जी द्वारा ‘प्रकृति संवादक’ सम्मान प्रदान किया गया।
कहीं कोई खलल है कोई कुछ शोर कहीं कोई दूर चौराहे पर फटे वस्त्रों में चुप्पी में है। अधनंग भागते समय की पीठ पर सवाल ही सवाल हैं। सोचता ह...
निराशा से आशा की और बढ़ते कदम ,सुंदर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका अनुपमा जी।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ अगस्त २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी बहुत आभार आपका श्वेता जी। मेरी रचना को शामिल करने के लिए साधुवाद।
हटाएंजी बहुत आभार आपका मीना जी। मेरी रचना को शामिल करने के लिए साधुवाद।
जवाब देंहटाएंआशा का संचार करती बहुत सुंदर रचना, संदीप भाई।
जवाब देंहटाएंजी बहुत आभार आपका ज्योति जी।
हटाएंबेहद प्यारी रचना
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
बहुत बहुत आभार आपका विभा जी।
हटाएंतभी कहते न कि उम्मीद पर दुनिया कायम ।
जवाब देंहटाएंकभी तो अव्यवस्था रूपी अंधेरा छंटेगा । लेकिन हम अँधेरों में भटकने के आदी हैं , रोशनी बर्दाश्त भी नहीं होती ।
सुंदर अभिव्यक्ति ।
बहुत बहुत आभार आपका संगीता जी।
हटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका
हटाएंदूर
जवाब देंहटाएंबहुत दूर
कोई खूबसूरत सुबह
रात की निराशा को
चीरकर
बढ़ रही हमारी ओर
देखो इंतजार करो
भोर होने वाली है
बस इसी भोर का इंतजार है कब ये स्याह रात छँटेगी...
आशा का संचार करती बहुत सुन्दर कृति।
आभार आपका सुधा जी...।
हटाएंबहुत सुंदर, सकारात्मकता का संचार करती सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंआभार आपका जिज्ञासा जी।
हटाएंबहुत बहुत सुंदर!!
जवाब देंहटाएंआशा का सूरज जरूर उदय होता है।
सुखद अहसास।
बहुत बहुत आभार आपका।
हटाएंबस इसी इसी में सभी हैं कि भोर होने वाली है
जवाब देंहटाएंआभार आपका प्रीति जी...लेकिन उम्मीद की भोर हमेशा रहती है...।
हटाएंइंतज़ार वही बेहतर होता है शर्मा जी जो कभी-न-कभी ख़त्म ज़रूर हो क्योंकि इंतज़ार का मज़ा शायरी में तो आ सकता है, ज़िन्दगी में नहीं। लम्बा इंतज़ार बड़ा बोझिल हो जाता है लेकिन उसका सिला मिल जाए तो शिकवा भी नहीं रहता। आपकी कविता बहुत अच्छी है क्योंकि नाउम्मीदी के अंधेरे में उम्मीद की शफ़क़ जगाती है। इस कविता की आख़िरी सतरों ने मुझे सुशील सिद्धार्थ जी की एक बरसों पुरानी ग़ज़ल का एक शेर याद दिला दिया:
जवाब देंहटाएंतुम क्या जानो क्यों हम उगते सूरज के दीवाने हैं
एक सुबह की ख़ातिर हमने सारी उम्र गुज़ारी है
मन प्रसन्न हो गया जितेंद्र जी...शेर जैसे मुझ पर सटीक है...। जीवन में शब्द आपके सच्चे दोस्त होते है...। आभार आपका...।
हटाएंसुंदर आशा जगाती पंक्तियाँ.. रात जब सबसे स्याह हो तब सोचो भोर होने वाली है तो वह स्याह रात गुजारना आसान हो जाता है....
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका विकास जी...।
हटाएंबहुत सुन्दर मधुर रचना
जवाब देंहटाएंआभार आपका आलोक जी...
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआपकी सारी रचनाएँ मेरी अंतरात्मा में उतर जाती है। आज मुझे आपकी रचनाएँ पढने का मन हुआ तो आपका ब्लॉग ढूंढकर पढा। मैं ब्लॉग पर कई महिनों बाद आया हूँ। आप बेहतरीन हैं।