झुलसे से समाज में
रोटी का आकार बेशक सभी के लिए
गोल हो सकता है।
झुलसे से एकांकी घर में
रोटी की रंगत
अनेकानेक
स्याह सी ही होती है।
भूखे पेट
और
उनकी अंतड़ियों के बीच
कोई भूगोल
नहीं होता
केवल
भूख ही भाषा
और
सर्वव्यापी परिभाषा होती है।
यहां आंखों की कोरों में नमक
अब सवाल कहा जाता है।
भूख अक्सर
बस्तियां में नग्नावस्था में घूमती है
कच्चे घरों में
बच्चों के चेहरे
भी रोटी जैसे हो जाते हैं
गोल और बहुत स्याह।
भूखे लोग
सवाल नहीं करते
रोटी मांगते हैं
और
रोटी को ही वह
सवाल कहते हैं।
समाज के चेहरे पर
अब
दर्दशा की झुर्रियां हैं
जिन्हें
लेकर
वह अब
डरता है
उन गरीब बस्तियों में जाने से
उसे भय सताता है
कहीं
बच्चे भूख और रोटी के भूगोल को
एक न कर दें
और कहीं
कोई झुलसी की जिद
लेप न दे
चेहरे पर
सवालों का स्याह घोल।
बस्तियों में आज भी
घर टपकते हैं
बच्चे नंगे घूमते हैं
नालियों के किनारे जलते हैं चूल्हे
अब भी बारिश का भय
खाली पाइपों में
ले जाता है भयभीत चेहरों को
यह दिखाने की
जिंदगी केवल रिसती नहीं है
वह
कभी कभी
पूरा का पूरा
बहा ले जाती है
अपनी जिद में
और
दूर टापू पर खड़ा कोई समाज
हिज्जे लेकर
हलकाला हुआ चीखता सा कहता है
बचा लो कोई उन्हें
देखो वहां भी बस्ती है
वहां भी कोई तो उम्मीद बसती है...।
डूबी बस्ती की
सूखी पीठ पर
बेशर्मी के आश्वासन चिपटा दिए जाते हैं
और
अगली बार उन्हीं को नोंच नोंचकर
गरीब
चूल्हे जलाकर रोटी बना लेते हैं।
भूखों
की बस्ती में
आश्वासन की
न जमीन होती है
न ही आसमान
हां होता है तो केवल
एक खूबसूरत फरेब।
बहुत आभार आपका आदरणीय दिग्विजय अग्रवाल जी। मेरी रचना को सम्मान देने के लिए साधुवाद।
ReplyDeleteडूबी बस्ती की
ReplyDeleteसूखी पीठ पर
बेशर्मी के आश्वासन चिपटा दिए जाते हैं
और
अगली बार उन्हीं को नोंच नोंचकर
गरीब
चूल्हे जलाकर रोटी बना लेते हैं।
कितना कठोर होता है सत्य । सोचो तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं । झकझोर देने वाली अभिव्यक्ति ।।
जी बहुत आभार. आपका संगीता जी...
ReplyDeleteकटु सत्य पर निशब्द करता मर्मस्पर्शी शब्द चित्र ।
ReplyDeleteजी बहुत आभार. आपका
Deleteएक सत्य जो रोज देखते हैं और मन दुखी तो होता है...पर कुछ खास कर नहीं पाते... मार्मिक सृजन संदीप जी,सादर नमन
ReplyDeleteजी बहुत आभार. आपका
Deleteऔर फरेब का कोई चेहरा नहीं होता ...
ReplyDeleteरोटी फिर भी गोल होती है ... बहुत गहरा संवाद इस रचना के द्वारा ...
जी बहुत आभार. आपका
ReplyDeleteजीवन की कटु सच्चाई, मिःशब्द करती गूढ़ रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर डूबी बस्ती की
ReplyDeleteसूखी पीठ पर
बेशर्मी के आश्वासन चिपटा दिए जाते हैं