सुर्ख सच
जब उम्रदराज़ होकर
कोई किताब हो जाए
तब मानिये
उम्र का पंछी
सांझ की सुर्ख लालिमा
के परम को
आत्मसात कर चुका है।
उम्र और सांझ
परस्पर
साथ चलते हैं
उम्र
का कोई एक सिरा
सांझ से बंधा होता है
और
सांझ
का एक सिरा
उम्रदराज़ विचारों से बंधा होता है।
एक
किताब
उम्र
और
सांझ
आध्यात्म का चरम हैं।
सांझ लिखी जा सकती है
ठीक वैसे ही
उम्र विचारों में ढलकर
किताब हो जाती है।
आईये
सांझ के किनारे
एक उम्र की
किताब
सौंप आएं
सच और सच
को गहरे जीती हुई
नदी की लहरों को।
आखिर
उम्र और सांझ
दोनों ही प्रवाहित हो जाती हैं
एक किताब के श्वेत पन्नों पर...।
सांझ लिखी जा सकती है
ReplyDeleteठीक वैसे ही
उम्र विचारों में ढलकर
किताब हो जाती है।
आईये
सांझ के किनारे
एक उम्र की
किताब
सौंप आएं
बहुत सटीक सार्थक एवं गहन चिंतनपरक सृजन
वाह!!!
आभार आपका सुधा जी...।
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (20-12-2021 ) को 'चार दिन की जिन्दगी, बाकी अंधेरी रात है' (चर्चा अंक 4284) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:30 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आभार आपका रवीन्द्र जी...। साधुवाद
Deleteउम्र हो जाती है जब तब साँझ घिर आती है जीवन की, दोनों के आपसी संबंध को दर्शाती सुंदर रचना!
ReplyDeleteअनीता जी बहुत आभार आपका...।
Deleteअति सूक्ष्म विश्लेषित भाव एवं सुंदर रचना।
ReplyDeleteप्रणाम सर
सादर।
बहुत आभार आपका श्वेता जी...।
Deleteबहुत ही गहरे भावों को व्यक्त करती खूबसूरत रचना!
ReplyDeleteआभार आपका मनीषा जी...।
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