Followers

Tuesday, August 30, 2022

तुम्हें अधिकार है

तुम्हें अधिकार है

मेरे प्रेम तत्व के हरण का।

तुम्हें 

अधिकार है

उस रंग को बदरंग करने का

जो निखरा है तुम्हारे लिए

और तुमसे। 

तुम्हें 

अधिकार है

उन कोमल हिस्सों पर 

नुकीले दंश चुभाने का 

जिन्हें तुम चाहते तो

सहला सकते थे 

सदियों। 

तुम्हें 

अधिकार है

मेरे अंतस में छिपे पराग को 

छिन्न भिन्न करने का

तुम चाहते तो 

उनसे बसा सकते थे 

असंख्य प्रकृति। 

तुम्हें 

अधिकार है 

नेहालाप का

तुम्हें 

अधिकार है

उन सभी क्रूर बहानों को छिपाने का

जो तुम रचते रहे 

मेरे 

दैहिक हनन के समय। 

तुम्हें 

अधिकार है

मुझे शोषण के बाद 

बिखरने को छोड़ने को। 

मुझे बिखरकर भी 

बेमतलब खाद होना 

पसंद है

तुम्हें तो दूसरा फूल खोजना होगा

उसे दोबारा वायदों में 

बहकाने को..।

 

8 comments:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 01 सितम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आपका यशोदा जी...। साधुवाद

      Delete
  2. मानव ने प्रकृति के साथ जो भी अनाचार किया है उसका फल उसे खुद ही भोगना पड़ता है, प्रकृति का सम्मान करना सीखना ही उसकी नियति है

    ReplyDelete
  3. सब अधिकार ही समझते हैं कभी अपने कर्तव्य भी समझ पाएँ । प्रकृति का दोहन ही कर रहे सब।

    ReplyDelete
  4. वाह लाजबाव सृजन

    ReplyDelete

कागज की नाव

कागज की नाव इस बार रखी ही रह गई किताब के पन्नों के भीतर अबकी बारिश की जगह बादल आए और आ गई अंजाने ही आंधी। बच्चे ने नाव सहेजकर रख दी उस पर अग...