तुम्हें अधिकार है
मेरे प्रेम तत्व के हरण का।
तुम्हें
अधिकार है
उस रंग को बदरंग करने का
जो निखरा है तुम्हारे लिए
और तुमसे।
तुम्हें
अधिकार है
उन कोमल हिस्सों पर
नुकीले दंश चुभाने का
जिन्हें तुम चाहते तो
सहला सकते थे
सदियों।
तुम्हें
अधिकार है
मेरे अंतस में छिपे पराग को
छिन्न भिन्न करने का
तुम चाहते तो
उनसे बसा सकते थे
असंख्य प्रकृति।
तुम्हें
अधिकार है
नेहालाप का
तुम्हें
अधिकार है
उन सभी क्रूर बहानों को छिपाने का
जो तुम रचते रहे
मेरे
दैहिक हनन के समय।
तुम्हें
अधिकार है
मुझे शोषण के बाद
बिखरने को छोड़ने को।
मुझे बिखरकर भी
बेमतलब खाद होना
पसंद है
तुम्हें तो दूसरा फूल खोजना होगा
उसे दोबारा वायदों में
बहकाने को..।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 01 सितम्बर 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आभार आपका यशोदा जी...। साधुवाद
Deleteमानव ने प्रकृति के साथ जो भी अनाचार किया है उसका फल उसे खुद ही भोगना पड़ता है, प्रकृति का सम्मान करना सीखना ही उसकी नियति है
ReplyDeleteआभार आपका
Deleteसब अधिकार ही समझते हैं कभी अपने कर्तव्य भी समझ पाएँ । प्रकृति का दोहन ही कर रहे सब।
ReplyDeleteआभार आपका
Deleteवाह लाजबाव सृजन
ReplyDeleteआभार आपका
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