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Tuesday, May 23, 2023

यह वह सिरे वाली नदी नहीं

नदी का पहला सिरा

यकीनन कभी 

उगते सूर्य के सबसे निचले

पहाड़  के गर्भ में कहीं

बर्फ के नुकीले छोर से बंधा रहा होगा।

नदी का दूसरा सिरा

नहीं होता।

नदी 

उत्पत्ति से विघटन

की परिभाषा है।

सतह पर जो है

नदी नहीं

क्योंकि 

पहले सिरे का वह बर्फ वाला

नुकीला छोर 

टूटकर नदी के साथ बह गया।

अब उस नदी का 

पहला सिरा भी नहीं है

केवल 

हांफती हुई जिद का कुछ 

सतही आवेग है

जो

उस पहले सिरे सा

किसी दिन बह जाएगा

और 

रह जाएगी

केवल नदी की दास्तां

पथ

निशान

और उसकी राह में

शहरों की आदमखोर भीड़।

नदी 

उस पुत्री की तरह है

जो जानती है

मायके के हमेशा के लिए छूट जाने का दर्द

और

दूसरे सिरे की अंतहीन यात्रा का अनजान पथ

और 

उस पर प्रतिपल पसरता भय।

नदी है 

लेकिन यह वह सिरे वाली नदी नहीं। 

6 comments:

  1. बहुत अच्छी कविता है यह ‌‌जिसके सूक्ष्म अर्थ को समझने की आवश्यकता है।

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  2. नदी
    उस पुत्री की तरह है
    जो जानती है
    मायके के हमेशा के लिए छूट जाने का दर्द ।
    सटीकता से ओतप्रोत गहन सृजन ।

    ReplyDelete
  3. नदी का पहला सिरा मानव सभ्यता के अस्तित्व के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
    अत्यंत गहन भाव लिए सराहनीय रचना सर।
    सादर।
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २६ मई २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  4. नदी पर विहंगम दृष्टि डाली गई है । सुंदर रचना ।

    ReplyDelete
  5. नदी

    उस पुत्री की तरह है

    जो जानती है

    मायके के हमेशा के लिए छूट जाने का दर्द

    और

    दूसरे सिरे की अंतहीन यात्रा का अनजान पथ
    वाह!!!
    गह अर्थ लिए सारगर्भित सृजन।

    ReplyDelete

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