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No posts with label आंखें सुर्ख शरीर मौन खामोशी कोरोना कविताएं आसमान निःशब्द. Show all posts
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ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...