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शनिवार, 4 दिसंबर 2021

पीला समय


उम्र के कुछ पन्ने 

बहुत सख्त होकर 

सूखे से 

दोपहर के दिनों 

की गवाही हैं..।

सूखे पन्नों पर 

अनुभव का सच है

जो उभरा है अब भी

उन्हीं सूखे पन्नों

के खुरदुरे शरीर पर।

पन्ने का सूख जाना

समय का पीलापन है

शब्दों का नहीं।

समय 

सिखा रहा है

अपनी खुरदुरी पीठ 

दिखाते हुए

खरोंच के निशान

जो 

दिखाई नहीं देते

दर्द देते हैं।

उम्र का हरापन

भी जिंदा है

शब्दों 

की मात्राओं के शीर्ष पर 

अभी पीला नहीं हुआ है।

हरे से पीले हो जाने में 

कुछ नहीं बदलता

बस 

एक उम्र सख्त होना सिखा जाती है।

पीले पन्नों की किताब में 

अभी कुछ श्वेत हैं

अनुभव का 

खिलखिलाता हरापन 

लिखना चाहता हूँ

उन पर।

देख रहा हूँ 

पीले पन्नों में 

अनुभव के कुछ शब्द

घूर रहे हैं

वे 

अब भी सहज नहीं हैं।



(फोटोग्राफ /गजेन्द्र पाल सिंह जी...। आभार)

 

अभिव्यक्ति

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