कविताएं मन तक टहल आती हैं, शब्दों को पीठ पर बैठाए वो दूर तक सफर करना चाहती हैं हमारे हरेपन में जीकर मुस्कुराती हैं कोई ठोर ठहरती हैं और किसी दालान बूंदों संग नहाती है। शब्दों के रंग बहुतेरे हैं बस उन्हें जीना सीख जाईये...कविता यही कहती है।
Followers
No posts with label मन नदी तट स्मृतियां गढ़ शिला इबारत. Show all posts
No posts with label मन नदी तट स्मृतियां गढ़ शिला इबारत. Show all posts
Subscribe to:
Posts (Atom)
ये हमारी जिद...?
सुना है गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं तापमा...
-
नदियां इन दिनों झेल रही हैं ताने और उलाहने। शहरों में नदियों का प्रवेश नागवार है मानव को क्योंकि वह नहीं चाहता अपने जीवन में अपने जीवन ...
-
कागज की नाव इस बार रखी ही रह गई किताब के पन्नों के भीतर अबकी बारिश की जगह बादल आए और आ गई अंजाने ही आंधी। बच्चे ने नाव सहेजकर रख दी उस पर अग...
-
रंगों के शहर में नजरें कारोबारी हो जाया करती हैं। रंगों का कारोबार बदन पर केंचुए सा रेंगता है। रंगों की पीढ़ी उम्र से पहले उन्हें ओढ़कर ...