पेड़
जलता है
तो केवल
उसका शरीर नहीं झुलसता
साथ झुलसते हैं
संस्कार
जीवन
उम्मीद
और भरोसा।
जले हुए
पेड़ के जिस्म की गंध
एक
सदी के विचारों के
धुआं हो जाने जैसी है।
जले हुए पेड़
में
बाकी रह जाता है
झुलसा सा मानवीय चेहरा
झुलसी हुई सदी
और
उसके बगल से झांकती
सहमी सी प्रकृति।
झुलसने और झुलसाने के बीच
कहीं बीच
खड़ा है
आदमी का आदमखोर जंगल
और
विचारों के लिबास में
आधी झुलसी
सभ्यता...।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 22 फरवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका..।
Deleteआभार आदरणीय अग्रवाल जी...।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत आभार आपका
Deleteवाह!बहुत खूब!
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका...
Deleteशानदार👌
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका
Deleteगहन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteजी बहुत आभार
Deleteक्या बात है
ReplyDeleteजी बहुत आभार
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