पेड़
जलता है
तो केवल
उसका शरीर नहीं झुलसता
साथ झुलसते हैं
संस्कार
जीवन
उम्मीद
और भरोसा।
जले हुए
पेड़ के जिस्म की गंध
एक
सदी के विचारों के
धुआं हो जाने जैसी है।
जले हुए पेड़
में
बाकी रह जाता है
झुलसा सा मानवीय चेहरा
झुलसी हुई सदी
और
उसके बगल से झांकती
सहमी सी प्रकृति।
झुलसने और झुलसाने के बीच
कहीं बीच
खड़ा है
आदमी का आदमखोर जंगल
और
विचारों के लिबास में
आधी झुलसी
सभ्यता...।