कोई
घर महकता है
तुम्हें पाकर।
कोई
चौखट घंटों बतियाती है
तुमसे।
कोई दालान
तुम्हारे साथ जीना चाहता है।
कोई
दरवाजा तुम्हें महसूस कर
खिलखिला उठता है
अकेले में।
कोई धूप
कहीं किसी दरवाजे की ओट से
देखने आ जाती है
तुम्हें।
ये घर
तुम्हारी मौजूदगी का हस्ताक्षर है
तुम
जैसे चाहो इसे
शब्दों में कह सकती हो।
तुम चाहो तो
इसे
मन कह दो
चाहो तो
आत्मा
या फिर
हमारे अहसास।
घर
तुमसे है
और
तुम्हीं घर की श्वास हो।
घर
तुम्हें न पाकर
उतावला सा
आ बैठता है
मुख्य दरवाजे की चौखट पर
दूर तक देखता है
एक सदी निहारता है
और
तुम्हें पाकर
समा जाता है
अहसासों की चारदीवारी में।
घर
बतियाता है
हां
ये घर बतियाता है
तुम जानती हो
कितने खूबसूरत एहसास ...
ReplyDeleteये घर
तुम्हारी मौजूदगी का हस्ताक्षर है
तुम
जैसे चाहो इसे
शब्दों में कह सकती हो।
मल्लिका का एहसास हो रहा होगा न ?
संगीता जी बहुत आभार...। मन के अहसास विचारों का साथ पाकर हमेशा मुस्कुरा उठते हैं...।
Deleteऐसे खूबसूरत भाव अगर हर घर की ड्योढ़ी से होकर भी गुजर जाय,तो शायद हमारे समाज की स्त्री का जीवन फूलों की बगिया सा महक उठे,आपके सुंदर मनोभाव और उस भाव के खुले समर्थन को मेरा हार्दिक नमन ।
ReplyDeleteआपको मेरी रचना और भाव अच्छे लगे...आभारी हूँ...। नेह की बगिया हर घर के दालान में होनी चाहिए...।
Deleteबहुत बढिया। किसी के प्रति अथाह अनुराग का साक्ष्य बनकर कोई चौखट बतियाये तो घर में अंदर से बाहर आनंद ही आनंद है। भावपूर्ण रचना प्रेमिल भाव 👌👌👌👌🙏
ReplyDeleteयही आनंद में हर चौखट अंकुरित करना चाहता हूं...। आभार रेणु जी...
ReplyDeleteऎसी रचनाएँ रोमांचित कर जाती हैं... एक अलग प्रकार का रोमांच होता है.
ReplyDeleteनिज जीवन से जुड़े बिम्ब बहुत भाते हैं....
बहुत आभार आपका संजय जी...।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना
ReplyDeleteबहुत आभार आपका
Delete