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Saturday, March 6, 2021

कोई सुबह तो आएगी


 

कोई सुबह तो आएगी

जब

फूल पर

गिरी ओस की बूंद

प्रकृति का आशीष समझी जाएगी

उसकी तुलना

हीरे की दमक से

नहीं की जाएगी।

फूलों के रंग पर

नहीं

भंवरे फूलों की तासीर पर

फिदा होंगे

फूल

भंवरों की भूख नहीं

उनके नेह का

उभार होंगे।

कांटों का पहरा जब

फूलों से

हटा लिया जाएगा

गुलाब जब

फूलों के राजा

की पदवी

त्याग

नेतृत्व का

नया सवेरा लाएगा।

कोई सुबह तो आएगी

जब सूरज

फूलों के

जिस्मों को गर्मी से

कतई नहीं झुलसाएगा

बारिश उन्हें

अपने क्रोध में

नहीं बहाएगी

कोई सुबह तो आएगी।

मनुष्य की नजरें

गुलाब में

प्रेम

के रंग की सुर्खी

की जगह

देखेंगी

उसके गहरे से सौंदर्य मौन को

कोई सुबह तो आएगी।


10 comments:

  1. आशा के किरन बिखेरती बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना ..

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    1. आपका बहुत आभार जिज्ञासा जी।

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  2. Replies
    1. आपका बहुत आभार शांतनु जी।

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  3. अच्छा है न प्रकृति के विविध रंगों को मानवीय रूपों के साथ सामंजस्य कर बिंबित किया जाता है यही भावात्मक जुड़ाव प्रकृति और मानव का सृष्टि में प्रेम का कारण हैँ।
    क्षमा सहित मेरी समझ के अनुरूप ऐसा कहे हम।

    सादर प्रणाम सर।

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    1. प्रकृति और मन में एक खूबसूरत सा रिश्ता है जिसे दोनों ही महसूस करते हैं, तभी हम प्रकृति को समझ पाते हैं तभी हम अपने मन को प्रकृति की भाषा समझने के काबिल बना पाते हैं। आपका बहुत आभार।

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  4. Replies
    1. आपका बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी।

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  5. बहुत सुन्दर मधुर चित्रण |

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