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Sunday, March 7, 2021

फिरकनी के पीछे का आदमी


 

बाजार

में फिरकनी

और 

फिरकनी का बाजार। 

आदमी 

जो बेच रहा है

वो

फिरकनी में बाजार खोज रहा है

बाजार

फिरकनी के पीछे के रंग

और 

आदमी 

खोज रहा है 

फिरकनी के पीछे का आदमी।

कौन

खोया है

कौन 

खोज रहा है

मैं इतना ही जान पाया 

कि फिरकनी

उस थके आदमी के कांधे पर

झूमने के अभिनय 

की विवशता है।

इतना जान पाया 

कि

फिरकनी

तब मन से 

घूमती और झूमती थी

जब मां 

गोद में बैठाकर 

मेरे आंसु पोंछ दिया करती थी

और

थमाती थी सफेद फिरकनी

जो 

उसके प्रेम के चटख रंगों 

वाली होती थी। 

अब इस दौर में

थके

कांधे वाला आदमी

फिरकनी को 

देख 

जी रहा है

पेट भर रहा है।

थकी फिरकनी

रात थककर 

सो जाती है।

पूरा दिन घूमना और थके आदमी की

पीठ पर लदे रहने

का आत्मबोध

उसके पैर ठिठकने पर 

मजबूर कर देता है।

आदमी

फिरकनी

और 

बचपन

सबकुछ खो गए हैं

केवल बाजार है

नजर न आने वाला

जार-जार करता बाजार।

20 comments:

  1. बाज़ार,आदमी और फिरकनी अद्भुत रचना।
    विचारों की गहनता सराहनीय है।

    प्रणाम सर
    सादर।

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  2. बहुत आभारी हूं आपका श्वेता जी। आपकी टिप्पणी में हमेशा गहराई होती है...।

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  3. बहुत सुंदर.. फिरकनी और इंसान.. आज के दौर में सब कुछ बाजारू हो गया है.. भावनात्मक वर्णन..

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    1. बहुत आभार जिज्ञासा जी...।

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना आज मंगलवार 9 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,

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  5. आज आदमी बाज़ार के हाथों फिरकनी बना हुआ है ।
    समझ ही नहीं पाता कि उसको इस्तेमाल किया जा रहा है ।
    विचारणीय रचना

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    1. बहुत आभार आपका संगीता जी...

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  6. बहुत सुन्दर और हृदय स्पर्शी रचना।

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    1. जी बहुत आभार आपका शास्त्री जी।

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  7. बयान-ए-हकीकत
    फिरकी भी मुखौटा भी..
    सादर..

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    Replies
    1. जी बहुत आभार आपका यशोदा जी...। फिरकी सा आदमी अब केवल फिरकी खोज रहा है अपनी स्मृतियों में।

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  8. आदमी बाजार है, बाजार आदमी। अच्छी रचना

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    Replies
    1. जी बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  9. आज के जीवन का कटुसत्य उकेरती रचना , बढ़िया !

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  10. बहुत सुन्दर सटीक रचना |

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