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Saturday, March 13, 2021

हमारी वैचारिक धरा पर पलाश बिखरा है


पलाश

पसंद है

हम दोनों को

पलाश

के रंग

हम दोनों से हैं

उसका मौसम

हमारे मन में

असंख्य

पलाश कर जाता है

अंकुरित।

हमारी वैचारिक धरा पर

पलाश बिखरा है। 

भाव और शब्दों

में

पलाश की रंगत है

पलाश

में 

हमारी कविता

हर 

मौसम महकती है

जैसे तुम और मैं

महक उठते हैं पलाश को पाकर।

हम 

उसके बिखराव और सृजन

दोनों का हिस्सा हैं।

बिखराव में

भी वह

हमें पलाश सा भाता है

खिलता

पलाश

हमें हंसाता है

बिखरा पलाश

जीवन समझाता है।

आओ

पलाश के बिखरे फूल

चुन लें

अगले मौसम की आमद तक।

18 comments:

  1. भावों भरी सुंदर अभिव्यक्ति..

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  2. जी बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी।

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 15 -03 -2021 ) को राजनीति वह अँधेरा है जिसे जीभर के आलोचा गया,कोसा गया...काश! कोई दीपक भी जलाता! (चर्चा अंक 4006) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    Replies
    1. जी बहुत आभार आपका आदरणीय...।

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  4. वाह! बहुत सुंदर!!!

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  5. बहुत ही सुंदर मन भावन सृजन।
    भाव और शब्दों

    में

    पलाश की रंगत है

    पलाश

    में

    हमारी कविता

    हर

    मौसम महकती है

    जैसे तुम और मैं..वाह!

    ReplyDelete
  6. जी बहुत शुक्रिया अनीता जी...।

    ReplyDelete
  7. हम

    उसके बिखराव और सृजन

    दोनों का हिस्सा हैं।

    बिखराव में

    भी वह

    हमें पलाश सा भाता है

    खिलता

    पलाश

    हमें हंसाता है

    बिखरा पलाश

    जीवन समझाता है।

    सुंदर रचना....

    ReplyDelete
  8. जी बहुत आभार आपका...।

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  9. बहुत ही सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति,सादर

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  10. ज़िन्दगी में यूँ ही पलाश खिला रहे ... अगली आमद तक के लिए चुन ही लीजिये पलाश .
    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  11. बहुत बहुत सरहनी मधुर रचना |

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  12. आलोक जी बहुत आभार...।

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