नहीं जानता
तुम
कैसे सो पाते हो
चैन से
उस रात
जब पेड़ का एक बाजू
काट दिया जाता है
और
तुम तक
आवाज़ नहीं पहुंचती।
नहीं जानता
तुम
कैसे मुस्कुरा पाते हो
किसी
कटे जंगल
में
सूखे पेड़ों के
आधे अधूरे
जिस्मों के बीच।
नहीं जानता
तुम्हें
पेड़ का कटना
सदी
पर प्रहार क्यों नहीं लगता।
नहीं जानता
पेड़ों के समाज
में
अब
आदमी का
प्रवेश
निषिद्ध है
और हम बेपरवाह।
मैं
इतना जानता हूँ
कटे
पेड़
के शरीरों वाला जंगल
हमारे समाज की
आखिर सीमा है।
मैं
इतना जानता हूँ
बिना
पेड़ों वाली सुबह
हो नहीं सकती।
सटीक प्रश्न उठाती उत्कृष्ट रचना, हृदय को बेध गईं आपकी पंक्तियां..
ReplyDeleteबहुत आभार जिज्ञासा जी...प्रकृति पर सतत और समग्र लेखन जरुरी है।
Deleteउजाड़कर पेड़ की जड़ों को बसी बस्तियों की नींव,
ReplyDeleteशाखों,पत्तियों,पक्षियों के शाप से कभी मुक्त कहाँ हो पाते हैं....आजीवन।
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बेहतरीन चिंतन।
प्रणाम सर।ः
सादर।
जाड़कर पेड़ की जड़ों को बसी बस्तियों की नींव,
ReplyDeleteशाखों,पत्तियों,पक्षियों के शाप से कभी मुक्त कहाँ हो पाते हैं..-वाह बहुत अच्छी पंक्तियां हैं श्वेता जी...। आभार आपका।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 16 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका यशोदा जी...।
Deleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका...।
Deleteवाकई , पेड़ों के बिना कैसा जीवन ।
ReplyDeleteसंदेश देती सुंदर रचना ।
जी बहुत आभार आपका...।
Deleteपेड़ों के बिना मानव का अस्तितत्व हो ही नहीं सकता, इन्हें काटना अपने आपको क्षति पहुँचाना ही है, सार्थक लेखन
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका...।
Deleteयथार्थ पर कटाक्ष करती रचना इंसान पेड़ो पर नहीं खुद पर कुठाराघात कर रहा है
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका...।
Deleteहम धीरे धीरे संवेदनाशून्य हो रहे हैं
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका...।
Deleteसही कहा आपने "ये हमारे समाज की आखिर सीमा है" हम खुद ही खुद की सांसे छीनने पर तुले है
ReplyDeleteसुंदर सन्देश देती रचना....
जी बहुत आभार आपका...।
Deleteमैं
ReplyDeleteइतना जानता हूँ
बिना
पेड़ों वाली सुबह
हो नहीं सकती।------- बहुत सुन्दर रचना _
जी बहुत आभार आपका...
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