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रविवार, 14 मार्च 2021

कटे पेड़ के शरीरों वाला जंगल


 नहीं जानता

तुम

कैसे सो पाते हो 

चैन से

उस रात

जब पेड़ का एक बाजू

काट दिया जाता है

और 

तुम तक

आवाज़ नहीं पहुंचती।

नहीं जानता

तुम

कैसे मुस्कुरा पाते हो

किसी 

कटे जंगल

में

सूखे पेड़ों के

आधे अधूरे

जिस्मों के बीच।

नहीं जानता

तुम्हें

पेड़ का कटना

सदी

पर प्रहार क्यों नहीं लगता।

नहीं जानता

पेड़ों के समाज

में

अब 

आदमी का

प्रवेश

निषिद्ध है

और हम बेपरवाह।

मैं

इतना जानता हूँ

कटे

पेड़

के शरीरों वाला जंगल

हमारे समाज की

आखिर सीमा है।

मैं 

इतना जानता हूँ

बिना

पेड़ों वाली सुबह

हो नहीं सकती।



दरारों के बीच देखिएगा कहीं कोई पौधा

  कहीं किसी सूखती धरा के सीने पर कहीं किसी दरार में कोई बीज  जीवन की जददोजहद के बीच कुलबुलाहट में जी रहा होता है। बारिश, हवा, धूप  के बावजूद...