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Saturday, March 13, 2021

हमारी वैचारिक धरा पर पलाश बिखरा है


पलाश

पसंद है

हम दोनों को

पलाश

के रंग

हम दोनों से हैं

उसका मौसम

हमारे मन में

असंख्य

पलाश कर जाता है

अंकुरित।

हमारी वैचारिक धरा पर

पलाश बिखरा है। 

भाव और शब्दों

में

पलाश की रंगत है

पलाश

में 

हमारी कविता

हर 

मौसम महकती है

जैसे तुम और मैं

महक उठते हैं पलाश को पाकर।

हम 

उसके बिखराव और सृजन

दोनों का हिस्सा हैं।

बिखराव में

भी वह

हमें पलाश सा भाता है

खिलता

पलाश

हमें हंसाता है

बिखरा पलाश

जीवन समझाता है।

आओ

पलाश के बिखरे फूल

चुन लें

अगले मौसम की आमद तक।

Monday, March 1, 2021

पलाश


तुम्हें 
पलाश पसंद है
हां पलाश
जिसके 
नीचे हमने भरे थे 
सपनों में रंग।
पलाश
हमारे जीवन की 
किताब का
आवरण है।
पलाश पर
तुमने
पहली कविता लिखी थी
उसके रंग की
स्याही में भिगोकर
शब्द 
अब भी उभरे हैं
तुम्हारे मन
और 
मेरे विचारों पर।
पलाश
पर अब भी तुम 
लिखना चाहती हो जीवन
और
हमारे रिश्ते को।
पलाश
सच 
कितना सच है
ये 
तुममे और मुझमें 
समान महकता है।
पलाश 
उम्र के दस्तावेज पर
अंकित है 
और महकता रहेगा।

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...