पलाश
पसंद है
हम दोनों को
पलाश
के रंग
हम दोनों से हैं
उसका मौसम
हमारे मन में
असंख्य
पलाश कर जाता है
अंकुरित।
हमारी वैचारिक धरा पर
पलाश बिखरा है।
भाव और शब्दों
में
पलाश की रंगत है
पलाश
में
हमारी कविता
हर
मौसम महकती है
जैसे तुम और मैं
महक उठते हैं पलाश को पाकर।
हम
उसके बिखराव और सृजन
दोनों का हिस्सा हैं।
बिखराव में
भी वह
हमें पलाश सा भाता है
खिलता
पलाश
हमें हंसाता है
बिखरा पलाश
जीवन समझाता है।
आओ
पलाश के बिखरे फूल
चुन लें
अगले मौसम की आमद तक।