बाजार
में फिरकनी
और
फिरकनी का बाजार।
आदमी
जो बेच रहा है
वो
फिरकनी में बाजार खोज रहा है
बाजार
फिरकनी के पीछे के रंग
और
आदमी
खोज रहा है
फिरकनी के पीछे का आदमी।
कौन
खोया है
कौन
खोज रहा है
मैं इतना ही जान पाया
कि फिरकनी
उस थके आदमी के कांधे पर
झूमने के अभिनय
की विवशता है।
इतना जान पाया
कि
फिरकनी
तब मन से
घूमती और झूमती थी
जब मां
गोद में बैठाकर
मेरे आंसु पोंछ दिया करती थी
और
थमाती थी सफेद फिरकनी
जो
उसके प्रेम के चटख रंगों
वाली होती थी।
अब इस दौर में
थके
कांधे वाला आदमी
फिरकनी को
देख
जी रहा है
पेट भर रहा है।
थकी फिरकनी
रात थककर
सो जाती है।
पूरा दिन घूमना और थके आदमी की
पीठ पर लदे रहने
का आत्मबोध
उसके पैर ठिठकने पर
मजबूर कर देता है।
आदमी
फिरकनी
और
बचपन
सबकुछ खो गए हैं
केवल बाजार है
नजर न आने वाला
जार-जार करता बाजार।