कोरोना काल पर कविताएं...
3.
ये जीवन समर है
सब भाग रहे हैं
अंतहीन
दौड़
में
पैरों में
सपने
कुचले जा रहे हैं।
चेहरे और मानवीयता
अब
रुआंसी है।
चेहरे पर चेहरे
वाला समाज
एक और मुखौटे को
ओढ़ चुका है।
मन
की मन से
दूरियों वाला समाज
असहज
और असहाय है।
कुछ चेहरे
मन
कुछ
चेहरे
खुशी
कुछ चेहरे
अब तलाश रहे हैं
धन।
मन का बाजार
सूखा है
एक रेगिस्तान
है
धन की भूख
का भेड़िया
निगल रहा है
समाज को।
दो पैरों वाला इंसान
मदमस्त
घूम रहा है
अपने
बसाए जंगल में।
कुछ दूर
जंगल की सीमा पर
धन की गठरी
बांधे कुछ
बेबस मुसाफिर
तलाश रहे हैं
जीवन
अपने
सपने
और
समय जो कुचल दिया गया
लोलुपतावश।
वर्तमान समय के हिसाब बहुत ही सटीक रचना। आज के हालात ऐसे ही है।
ReplyDeleteसच..। ये हालात ही इतिहास लिखेंगे...।
Deleteबहुत आभार आपका कामिनी जी...। अवश्य आपका ये अंक बहुत खूबसूरत और पठनीय होगा।
ReplyDeleteकोरोना काल में वाकई ऐसा ही घट रहा है लेकिन समय करवट लेगा जरूर
ReplyDeleteमार्मिक औऱ भावपूर्ण कविता
ReplyDeleteवाकई इन दिनों मन बहुत दुखी है
सच अभी तो चँहु ओर निराशा का सम्राज्य है ।
ReplyDeleteपर वक्त जरूर बदलेगा।
हृदय स्पर्शी रचना।
मन का बाजार सचमुच सूना है . बहुत खूब
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी रचना
ReplyDeleteमन बिल्कुल सूख गया है,सच कहा आपने, मार्मिक कविता।
ReplyDelete