कोरोना काल पर कविताएं...
3.
ये जीवन समर है
सब भाग रहे हैं
अंतहीन
दौड़
में
पैरों में
सपने
कुचले जा रहे हैं।
चेहरे और मानवीयता
अब
रुआंसी है।
चेहरे पर चेहरे
वाला समाज
एक और मुखौटे को
ओढ़ चुका है।
मन
की मन से
दूरियों वाला समाज
असहज
और असहाय है।
कुछ चेहरे
मन
कुछ
चेहरे
खुशी
कुछ चेहरे
अब तलाश रहे हैं
धन।
मन का बाजार
सूखा है
एक रेगिस्तान
है
धन की भूख
का भेड़िया
निगल रहा है
समाज को।
दो पैरों वाला इंसान
मदमस्त
घूम रहा है
अपने
बसाए जंगल में।
कुछ दूर
जंगल की सीमा पर
धन की गठरी
बांधे कुछ
बेबस मुसाफिर
तलाश रहे हैं
जीवन
अपने
सपने
और
समय जो कुचल दिया गया
लोलुपतावश।