जिंदगी
का वह हरेक दिन
जब हम साथ बैठ
खिलखिलाए
गुलाब थे।
वह हरेक दिन
जब हम
उलझनों पर
दर्ज करते थे जीत
गुलाब थे।
वह हरेक दिन
जब
तुम और
मैं
हम हो गए
गुलाब थे।
वह हरेक दिन
जब हम पनीली आंखों में
मुस्कुराए
गुलाब थे।
वह हरेक दिन
जब खुशियों में भीग गए
हमारे मन
गुलाब थे।
वह हरेक दिन
जब जब
कठिन दिनों में
तुमने रखा कांधे पर हाथ
गुलाब थे...।
अहा ,
ReplyDeleteख़ुशी में गुलाब , संघर्ष में गुलाब , एक साथ होने में गुलाब .... बस रचना पढ़ कर गुलाब महक गए ... बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति .
संगीता जी...बहुत आभार
Deleteभावों का सुन्दर समावेश।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका।
ReplyDeleteसुख, दुख से जुड़े हर अहसास को आपने बड़ी आसानी से गुलाब जैसे ग्रहण कर लिया,ईश्वर ये सहजता बनाए रखे। सुंदर रचना ।
ReplyDeleteबहुत आभार जिज्ञासा जी...
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