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रविवार, 30 मई 2021

मैं तुम्हें बादल नहीं दे सकता

 


मैं तुम्हें

बादल नहीं दे सकता

तुम चाहो तो

कोई एक दिन मांग लो

कोई बोनसाई दिन।

बादल में

कुछ

तुरपाई रह गई है

बादल कराह रहा है

दर्द से

उम्मीदों की चुभन

गहरी होती है।

हर आंख घूर रही है।

देखो सच

कहूँ

वो बारिश का बढ़ता

बोझ

अधिक नहीं ढो

पाएगा

फट जाएगा तार तार

हो जाएगा।

क्या अब भी चाहती हो

वो थका सा बादल।

हां

मैं जानता हूँ

तुम्हें

सपने बुनने हैं

मेरी मानो

तुम बोनसाई दिन

रख लो।

मैं बादल की

तुरपाई करता हूँ

तब तक तुम

जीवन बुन लेना।

एक दिन जब

बादलों की बेबसी

नहीं होगी

जब तुम

सपने गूंथ चुकी होगी

मैं

सुई और धागा

बादल की पीठ पर रख

सपनों के उस

बोनसाई घर में

लौट आऊंगा।

सच मैं तुम्हें बादल

नहीं दे सकता।

16 टिप्‍पणियां:

  1. कोई बोनसाई दिन। सारगर्भित👍👌

    जवाब देंहटाएं
  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (31-05-2021 ) को 'नेता अपने सम्मान के लिए लड़ते हैं' (चर्चा अंक 4082) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका बहुत आभार आदरणीय रवींद्र जी। मेरी रचना को सम्मान देने के लिए आभारी हूं।

      हटाएं
  3. वाह!! बहुत ही सुंदर सृजन संदीप जी, सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  4. बादल में
    कुछ
    तुरपाई रह गई है

    वाह !!! लाजवाब !!!

    जवाब देंहटाएं
  5. गज़ब !
    बहुत ही अद्भुत रचना ।
    मैं तुम्हें बादल नहीं दे सकता ,तुरपन जो बाकी है।
    वाह!

    जवाब देंहटाएं

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