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रविवार, 30 मई 2021

मैं तुम्हें बादल नहीं दे सकता

 


मैं तुम्हें

बादल नहीं दे सकता

तुम चाहो तो

कोई एक दिन मांग लो

कोई बोनसाई दिन।

बादल में

कुछ

तुरपाई रह गई है

बादल कराह रहा है

दर्द से

उम्मीदों की चुभन

गहरी होती है।

हर आंख घूर रही है।

देखो सच

कहूँ

वो बारिश का बढ़ता

बोझ

अधिक नहीं ढो

पाएगा

फट जाएगा तार तार

हो जाएगा।

क्या अब भी चाहती हो

वो थका सा बादल।

हां

मैं जानता हूँ

तुम्हें

सपने बुनने हैं

मेरी मानो

तुम बोनसाई दिन

रख लो।

मैं बादल की

तुरपाई करता हूँ

तब तक तुम

जीवन बुन लेना।

एक दिन जब

बादलों की बेबसी

नहीं होगी

जब तुम

सपने गूंथ चुकी होगी

मैं

सुई और धागा

बादल की पीठ पर रख

सपनों के उस

बोनसाई घर में

लौट आऊंगा।

सच मैं तुम्हें बादल

नहीं दे सकता।

अभिव्यक्ति

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