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Friday, May 14, 2021

बुजुर्ग के साथ पूरा घर ही उठकर चला जाता है


एक बुजुर्ग की मौत का 

आशय है

एक युग का 

बीत जाना।

एक नीम का 

आंगन में 

सूख जाना।

एक घर के रौशनदान का 

हमेशा के लिए बंद हो जाना।

घर का बेसाया होना जाना

अनुभव की कोई किताब

हाथ से छूट जाना।

घर का बेजुबान हो जाना

आंगन का एकांत हो जाना

बालकनी का कभी न मुस्कुराना

घर की लंबी कुर्सी 

का

उदासी में खो जाना।

पौधों का सूख जाना

परिवार का सुख जाना।

मौसम का फिर कभी न खिलखिलाना

अखबार का 

बॉक्स में ही रह जाना।

घर का एक कोना

हमेशा के लिए

सूना हो जाना।

बच्चों का मौन हो जाना

दरवाजे का शोर करना

दहलीज का 

उठकर चले जाना

उस एक दिन का सूरज

हमेशा के लिए ढल जाना

अगली सुबह का न होना

केवल

जागना और फिर कभी भी 

कोई रात

आराम से न सोना।

एक बुजुर्ग की मौत

अंधेरे घर में

एकमात्र रौशनी की किरण का

खो जाना है।

एक बुजुर्ग की मौत

एक परिवार के लिए

एक सदी की मौत होती है। 

एक बुजुर्ग की मौत का आशय

घर के किसी सबसे मजबूत पिल्लर में

दरार का होना

घर में बेबस सी खामोशी का पसर जाना।

घर की सबसे पुरानी तस्वीर का

बार-बार पोंछा जाना

उनके छूए गए सामान को

कई बार

सीने से लगाना

उनकी अनुभूति में खो जाना

उनका हर पल

हर बात में याद आना

बुजुर्ग के साथ

चला जाता है 

पूरा घर ही उठकर

क्योंकि 

घर बुजुर्ग से ही तो बतियाता है 

खाली समय में अक्सर।

8 comments:

  1. वाह। आपकी रचनाएं पढ़कर लगता जीवन के सत्य पर आधारित है।🌻👌

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    1. आभार आपका शिवम जी...। कविताओं में शब्दों का चेहरा लेकर जीवन ही परिलक्षित होता है।

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  2. संदीप जी, आपकी रचना पढ़कर निशब्द हो बीती यादों से जा मिली। मानो,मेरे भीतर सुप्त पड़ी थी ये बातें जो मैं इस रचना में पढ़ रही हूं। बुजुर्ग आंगन का नीम होते हैं ये मेरे स्वर्गीय दादा जी कहा करते थे। सच में ही एक युग, एक सदी का अवसान हो जाता है इक बुजुर्ग के साथ, ये बात भी मैने अपने दादा
    दादी कीी मौत के बाद जानी जब उनके बराबर कोई ज्ञानी और अतीतरागी और अतीतानुरागी ना रहा। अठारह साल पहले जब पिताजी, हालांकि वो बुजुर्ग न थे पर उनके सरीखी गंभीरता और अतीत के प्रति विशेष लगाव था, जब गए तो मानो घर की बैठक उजड़ गई थी। वो रौनक और रुआब फिर नजर नहीं आया। मार्मिकता से लिखे आपके भाव अनायास आँखें नम कर गए। कितने अभागे हैं वो लोग जो बुजुर्गों को ना धर में चाहते हैं ना जीवन में। वो जाने क्यों भूल जाते हैं, वे भी जीवन की उसी सीढ़ी पर धीरे धीरे पहुंच रहे हैं जहां आज उनके बुजुर्ग खड़े हैं। मार्मिक रचना के लिए सस्नेह बधाई और आभार।

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    1. ये मन है ये ही रिश्ते बनाता है और ये ही रिश्ते को निभाना सिखाता है, हमें ये तय करना होगा कि मौजूदा दौर में जब मानवीयता सूख रही है तब रिश्तों की बेल हरी कैसे की जाए...। आभार आपका हमेशा की तरह एक गहरी प्रतिक्रिया के लिए रेणु जी।

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  3. बुजुर्गों के ऊपर लिखी यह भावपूर्ण कविता दिल को छू गई,आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन

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    1. जी बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी...बुजुर्गों पर लिखा जाना चाहिए, बहुत कुछ होता है जो वह साथ ले जात हैं क्योंकि कोई उनकी समय पर सुनना ही नहीं चाहता।

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  4. शब्द-शब्द सच है आपका जिसमें निहित संदेश और संवेदना, दोनों को ही हृदयंगम किया जाना चाहिए - हम में से प्रत्येक के द्वारा।

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  5. जी सच कहा आपने, बहुत आभार आपका जितेंद्र जी।

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