Followers

Thursday, September 2, 2021

हम और तुम


 











मैं 

तुम्हें 

इसी तरह देखता हूँ

मैं

तुम्हें 

प्रकृति में पानी की 

उम्मीद की तरह देखता हूँ।

हम और तुम 

क्या हैं

कुछ भी तो नहीं

केवल

उम्मीद की

बूंदों पर 

उम्र रखकर

जी जाते हैं

अपने आप को।


फोटोग्राफ भी मेरा ही है... फोटोग्राफ देख यह कविता सृजित हो गई...।





8 comments:

  1. वाह! सुंदर सृजन, उम्मीद की बूँदें ही जीवन को पोषती हैं

    ReplyDelete
  2. छायाचित्र भी अच्छा है, अभिव्यक्ति भी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आपका जितेंद्र जी।

      Delete
  3. Replies
    1. आभार आपका गजेंद्र जी।

      Delete
  4. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 04 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आपका यशोदा जी..। आपके नेह को प्रणाम...।

      Delete

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...