तुम्हें सच देखना आता है
सच
कहना क्यों नहीं आता।
तुम सच जानते हो
मानते नहीं।
तुम्हें सच की चीख का अंदाजा है
फिर भी चुप हो ही जाते हो।
जानते हो तुम
कि
सच और सच
के बीच
एक मजबूरी का जंगल है
उसमें
हजार बार
घुटते हो तुम
अपने प्रेरणाशून्य जम़ीर के साथ।
जानता हूं
सच
अब आदमखोर जिद के सख्त जबड़ों में दबा
मेमना है
जिसे
जंगल में घुमाया जा रहा है
अपनी सनक को साबित करने की खातिर।
एक दिन
जबड़े से छिटककर सच
गिरेगा किसी खोह में
जहां
दोबारा
गढ़ेगा
कुछ आदिमानव
जो
सच्चे हों
खरे हों
बेशक
पढ़ें लिखे ना हों...।
सच बोलना एक बार कठिन होता है लेकिन फिर उलझनों से बचा रहता है ।। काश सच बचा रहे ।
ReplyDeleteगहन भाव ।
जी बहुत आभार आपका संगीता जी...। सच जानने और समझने वालों को अब खामोश नहीं रहना चाहिए।
Deleteसच्चाई स्वयं को स्थापित कर ही लेती है|गहन रचना !!
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका अनुपमा जी...। सच जानने और समझने वालों को अब खामोश नहीं रहना चाहिए।
Deleteसच का
ReplyDeleteएक से दूसरे तक
पहुँचने के मध्य
दूरी चाहे शून्य भी हो तो
परिवर्तित हो जाता है
वास्तविक स्वरूप।
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विचार मंथन से उत्पन्न गहन अभिव्यक्ति सर।
सादर।
जी बहुत आभार आपका श्वेता जी...। सच जानने और समझने वालों को अब खामोश नहीं रहना चाहिए।
Deleteआपकी लिखी रचना सोमवार 30 ,अगस्त 2021 को साझा की गई है ,
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
जी बहुत आभार आपका संगीता जी....। रचना का सम्मान देने के लिए आभारी हूं।
Deleteशायद सत्य की परिभाषा बदल गयी है
ReplyDeleteउम्दा लेखन
बहुत आभारी हूं आपका विभा जी।
Deleteसच और सच
ReplyDeleteके बीच
एक मजबूरी का जंगल है
उसमें
हजार बार
घुटते हो तुम
अपने प्रेरणाशून्य जम़ीर के साथ।
सच की छटपटाहट जब मौन ही चीखती है तो कुछ ऐसी रचना जन्म लेती है ...उत्कृष्ट लेखन
बहुत आभारी हूं आपका सीमा जी। सच जानने और समझने वालों को अब खामोश नहीं रहना चाहिए।
Deleteसच की वैचारिक क्रांति न मानने पर भी होगी ही । समय चाहे जो हो । अत्यन्त गहन सृजन ।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका अमृता जी....। रचना का सम्मान देने के लिए आभारी हूं।
Deleteआदरणीय सर, एक अत्यंत सशक्त आत्मा झकझोर देने वाली रचना। सच ही है कि आज हर एक आम -आदमी सच जानता तो है पर कहने से डरता है, और फिर यह भी तो है कि समाज में फैले झूठ के हम सभी भागीदार हैं। बहुत ही सशक्त प्रहार आम आदमी की विवशता पर और समाज में फैली विकृतियों पर। हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका अनंता जी...। सच जानने और समझने वालों को अब खामोश नहीं रहना चाहिए।
Deleteसच को जबड़े में जकड़ा है या फिर सच किसी खोह में जा गिरे पर सच की भी अपनी ताकत होती है देर से ही सही सच को बाहर आना ही होता है....सच को छुपाने वाले और सच को नजरअंदाज करने वाले सच के आगे नहीं टिक पायेंगे।बहुत सुंदर विचारणीय सृजन।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका सुधा जी...। सच जानने और समझने वालों को अब खामोश नहीं रहना चाहिए।
Deleteमाना सच की ताकत है पर जबड़े में फंस के सच अनेकों बार अपनी मौत मर जाता है ... यही सत्य की किस्मत है ...
ReplyDeleteप्रभावी रचना ...
जी बहुत आभार आपका दिगम्बर नासवा जी...। सच जानने और समझने वालों को अब खामोश नहीं रहना चाहिए।
Deleteसच तो सच ही होता है। लेकिन सच को पचाना इतना आसान नही होता इसलिए इंसान झुठका सहारा लेता है। बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका ज्योति जी...। सच जानने और समझने वालों को अब खामोश नहीं रहना चाहिए।
Deleteसमाज में हर और व्याप्त झूठ और फरेब पर सशक्त प्रहार कर मनुष्य को झकझोरती अनुपम अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी...। सच जानने और समझने वालों को अब खामोश नहीं रहना चाहिए।
Deleteसच को जानकर भी जो चुप रह जाते हैं समाज उन्हें कभी माफ़ नहीं करता, सच एक न एक दिन सामने आता ही है
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका अनीता जी...। सच जानने और समझने वालों को अब खामोश नहीं रहना चाहिए।
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