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Friday, August 27, 2021

तुम दुर्वा की मुलायम सी उम्मीद लिख देना

मैं कोई सिंदूरी दिन लिखूं

तुम सांझ लिख देना

मैं कोई सवेरा खिलूं

तुम उल्लास लिख देना

मैं कोई मौसम लिखूं

तुम बयार लिख देना

मैं कोई नेह लिखूं

तुम उसका रंग लिख देना

मैं कोई अहसास लिखूं

तुम उसकी प्रकृति लिख देना

मैं कोई लम्हा लिखूं

तुम उसकी सादगी सी, श्वेत कसक लिख देना

मैं पक्षियों का निर्मल प्रेम लिखूं

तुम उनकी मुस्कान लिख देना

मैं धरा की दरकती दरारों की परत से झांकते अंधेरे में कुम्लाई जिंदगी लिखूं

तुम दुर्वा की मुलायम सी उम्मीद लिख देना

मैं लिखू

तुम लिखो

देखना ये जिंदगी की किताब जैसी ही तो है..

लिख लेंगे, जी लेंगे, समझ लेंगे

किसी गहरी छांव वाले दरख्त के बीच

किसी थके हुए पंछी की भांति

हमें ये भी राहत देती रहेगी, ये लेखनी, ये जिंदगी की गहरी स्याही...।




20 comments:

  1. लेखनी रहत तो देती ही है सुंदर भाव |

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    1. आभार आपका अनुपमा जी...

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२८-०८-२०२१) को
    'तुम दुर्वा की मुलायम सी उम्मीद लिख देना'(चर्चा अंक-४१७०)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. आभार आपका अनीता जी...

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  3. प्रेम की हर किताब के
    पृष्ठ में रखे
    शब्दों के मोरपंखी छुअन
    हौले से छूते है मन को,
    भाव रंगे होते हैं
    गाढ़े एहसास से
    ज़िंदगी की
    थकी हुई शाम
    जिसकी स्मृतियों की
    चुसकी से
    तरोताज़ा महसूस होती है।

    ------
    सादर प्रणाम सर



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    1. बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां हैं...। बहुत आभारी हूं आपका श्वेता जी।

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  4. हमें ये भी राहत देती रहेगी, ये लेखनी, ये जिंदगी की गहरी स्याही...।
    सचमुच लेखत राहत तो देती है
    लाजवाब सृजन।

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    1. जी बहुत आभारी हूं आपका सुधा जी।

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  5. वाह बहुत खूब, लाजबाव सृजन

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    1. जी बहुत आभारी हूं आपका भारती जी।

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  6. बहुत सुंदर भाव.. लेखनी राहत तो देती ही है.. और साथ में साथी भी ऐसा हो तो बात ही क्या है...

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    1. जी बहुत आभारी हूं आपका विकास जी।

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  7. बहुत सुन्दर भावसिक्त रचना ।

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    1. जी बहुत आभारी हूं आपका मीना जी।

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  8. देखना ये जिंदगी की किताब जैसी ही तो है..

    लिख लेंगे, जी लेंगे, समझ लेंगे

    किसी गहरी छांव वाले दरख्त के बीच

    किसी थके हुए पंछी की भांति

    हमें ये भी राहत देती रहेगी, ये लेखनी, ये जिंदगी की गहरी स्याही...।

    बहुत खूबसूरती से जिंदगी का हर अहसास आपने लड़ियों की तरह पिरो दिया,बहुत बधाई आपको ।

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    1. जी बहुत आभारी हूं आपका जिज्ञासा जी।

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  9. वाह!क्या बात है,
    सच ही है...
    क्षितिज चाहे मिले नहीं
    पर मन आकाश छुआ करता है ।
    सुंदर भाव।

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  10. आप विसंगतियाँ लिखिए
    लेकिन कल्पना में
    खूबसूरत लम्हे ही चुन लीजिए ।
    और फिर
    यूँ ज़िन्दगी में कुछ राहत की
    ख्वाहिश बुन लीजिए ।

    बेहतरीन अभिव्यक्ति ।

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