मैं कोई सिंदूरी दिन लिखूं
तुम सांझ लिख देना
मैं कोई सवेरा खिलूं
तुम उल्लास लिख देना
मैं कोई मौसम लिखूं
तुम बयार लिख देना
मैं कोई नेह लिखूं
तुम उसका रंग लिख देना
मैं कोई अहसास लिखूं
तुम उसकी प्रकृति लिख देना
मैं कोई लम्हा लिखूं
तुम उसकी सादगी सी, श्वेत कसक लिख देना
मैं पक्षियों का निर्मल प्रेम लिखूं
तुम उनकी मुस्कान लिख देना
मैं धरा की दरकती दरारों की परत से झांकते अंधेरे में कुम्लाई जिंदगी लिखूं
तुम दुर्वा की मुलायम सी उम्मीद लिख देना
मैं लिखू
तुम लिखो
देखना ये जिंदगी की किताब जैसी ही तो है..
लिख लेंगे, जी लेंगे, समझ लेंगे
किसी गहरी छांव वाले दरख्त के बीच
किसी थके हुए पंछी की भांति
हमें ये भी राहत देती रहेगी, ये लेखनी, ये जिंदगी की गहरी स्याही...।