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Friday, August 27, 2021

तुम दुर्वा की मुलायम सी उम्मीद लिख देना

मैं कोई सिंदूरी दिन लिखूं

तुम सांझ लिख देना

मैं कोई सवेरा खिलूं

तुम उल्लास लिख देना

मैं कोई मौसम लिखूं

तुम बयार लिख देना

मैं कोई नेह लिखूं

तुम उसका रंग लिख देना

मैं कोई अहसास लिखूं

तुम उसकी प्रकृति लिख देना

मैं कोई लम्हा लिखूं

तुम उसकी सादगी सी, श्वेत कसक लिख देना

मैं पक्षियों का निर्मल प्रेम लिखूं

तुम उनकी मुस्कान लिख देना

मैं धरा की दरकती दरारों की परत से झांकते अंधेरे में कुम्लाई जिंदगी लिखूं

तुम दुर्वा की मुलायम सी उम्मीद लिख देना

मैं लिखू

तुम लिखो

देखना ये जिंदगी की किताब जैसी ही तो है..

लिख लेंगे, जी लेंगे, समझ लेंगे

किसी गहरी छांव वाले दरख्त के बीच

किसी थके हुए पंछी की भांति

हमें ये भी राहत देती रहेगी, ये लेखनी, ये जिंदगी की गहरी स्याही...।




ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...