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Friday, November 12, 2021

भयभीत चेहरों का समाज

ये चेहरे
रोक देते हैं 
हमारी दौड़। 
भागते से हम 
ठिठक जाते हैं
इन्हें सामने पाकर। 
सच 
क्या ये आईना हैं
हमारे खुरदुरे समाज 
जिसमें हमेशा ही
बिगड़ी तस्वीर ही 
नज़र आती है...।
भागती जिंदगी की पीठ पर
कुछ
उदास और थके चेहरों का समाज
चीख रहा है
रोटी के लिए।
भूख यहां 
भूगोल और विज्ञान नहीं
गणित है।
चेहरों के बीच 
दरकती मानवीयता कहीं ठौर पाने
भटक रही है।
इनकी चीख
हमारे जम़ीर पर 
एक पल की दस्तक है
ग्रीन 
सिग्नल होते ही
विचारों और ऐसे समाज को रौंद
हम बढ़ जाते हैं
अपनी 
दुनिया में 
जहां
पीठ पर होते हैं
जोड़ घटाने
और 
पैरों तले कुचलने की साजिश।
समृद्ध समाज मदहोश है
और 
भाग रहा है 
अपने आप से
बहुत दूर
क्योंकि
ये सच्चे चेहरे
उन्हें डराते हैं...।


 

12 comments:

  1. इंसानी मानसिकता का यथार्थ चित्रण ।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार
    (14-11-21) को " होते देवउठान से, शुरू सभी शुभ काम"( चर्चा - 4248) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।

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  3. यथार्थ स्थिति को बयां करती हुई बहुत ही शानदार रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।

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  4. मार्मिक कटु सत्य

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।

      Delete
  5. शानदार रचना

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।

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  6. यथार्थ का शानदार चित्रण

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  7. बहुत बहुत आभार आपका।

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