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Thursday, November 3, 2022

ठौर

 


कदंब मन में कहीं
उग आया है
उसके अहसास हमें
खींच रहे हैं अपनी ओर।
कदंब का पेड़
अब भी रीता है
इन गर्बीले फलों के साथ
इंतज़ार में
तुम्हारे कान्हा।
फिर बसा दीजिए ना
वृंदावन
फिर छेड़ दीजिए ना
बांसुरी की तान
देखिए अब भी
गोपियां वहीं आपका इंतज़ार कर रही हैं
और रोज
बुहार रही हैं
कदंब का ठौर।

9 comments:

  1. आभार श्वेता जी...।

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  2. कदम्ब के माध्यम से कान्हा की याद आना स्वाभाविक है, दोनों अद्भुत हैं

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  3. बहुत आभार आपका...। अवश्य...।

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  4. कदंब का फल पहली बार देखा । सुंदर आह्वान ।

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    1. जी बहुत आभार...। मुरादाबाद में बहुत पेड़ हैं...।

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  5. सच है...कभी-कभी मन तो चाहता है, बीते पल फिर लौट आये।
    सुन्दर रचना है साहब!!

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